फादर्स डे विशेष कविता/ बाबू जी की तस्वीर
✍️ सुधांशु पांडे ‘निराला’
प्रयागराज, उत्तर प्रदेश
प्यारी है
न्यारी है
खुशियों की
उम्मीदों की
पिटारी है
मेरे बाबू जी की तस्वीर।
मकान की आधार शिला
बचपन का खिलौना;
खटोले पर बाबू की
तहमत का बिछौना!
आनंद मे
आलिंगन से
कसी हुई शरीर।
उम्मीदों की
पिटारी है
मेरे बाबू जी की तस्वीर।
उनकी उंगलियों का
पुष्ट सहारा;
बहती हुई कश्ती का
एक मात्र किनारा!
वो ही दूध
वो ही भात
वे ही पूरी वो ही खीर।
उम्मीदों की
पिटारी है
मेरे बाबू जी की तस्वीर।
प्यार से पुचकारना
आैर दुलारना;
उनकी बाहो का
मुलायम पालना!
दूर करती
बहुत दूर
अपरिमित पीर।
उम्मीदों की
पिटारी है
मेरे बाबू जी की तस्वीर।
किसी का प्यार प्रत्यक्ष
किसी का परोक्ष;
माँ जन्म देती है
पिता देता मोक्ष;
मेरे खातिर
वही रहीस
आैर वही फकीर।
उम्मीदों की
पिटारी है
मेरे बाबू जी की तस्वीर।