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कविता/ जयमाला का हार


कितना सुंदर काव्य है
अच्छे हैं रचनाकार

सुदूर ग्रामीण का है
वरिष्ठ साहित्यकार

नाम है कवि सुरेश कंठ
देते कविता का आकार

रखते सब अर्थ धर्म
करते हैं परोपकार

नहीं है आलस्यपन इनमें
पिरोते हैं शब्दों का आकार

फूलों से निकलती है सुगंध
लेता माला का आकार

बहुत मनभावन माला होगी
जब परिश्रम होगा साकार

महत्व इनका बढ़ जाएगी
बनेगा जब जयमाला का हार

मनोबल होगा और ऊंचा
करेंगे सब जय जयकार

रहेगा हमारी-आपकी भी
हम भी होंगे हिस्सेदार

माला का है बहुत महत्त्व
पहले इसका होता व्यबहार

पहले ऐसी बात नहीं थी
इससे मिलता है संस्कार