कविता/ कन्यादान क्या नहीं किया
✍️ कवि सुरेश कंठ
बथनाहा, अररिया (बिहार)
चाय में अगर चीनी नहीं
चाय पीने में क्या मज़ा
चलने में अगर तेजी नहीं
जाड़े में है क्या मज़ा
पढ़ते हैं अगर मन से नहीं
पुस्तक रखने में क्या मज़ा
दोस्त में अगर यारी नहीं
दोस्ती का तब क्या मज़ा
समाज में प्रतीष्ठा मिला नहीं
जीवन जीने में तब क्या मज़ा
धन में बरकत नहीं
धन कमाने में क्या मज़ा
व्यबहार में मिठास नहीं
जीवन जिने में क्या मज़ा
समय पर खुशी मिला नहीं
भाग – दौड से क्या मज़ा
जीवन में अर्जन किया नहीं
जीवन जिने में क्या मज़ा
जीवन में 3 कार्य किया नहीं
जीवन जीने में क्या मज़ा
रहने का छप्पर बनाया नहीं
जीवन जीने में क्या मज़ा
बाल-बच्चों को बनाए नहीं
जीवन जीने में क्या मज़ा
जीवन में कन्यादान किया नहीं
जीवन जीने में तब क्या मज़ा
” कंठ जी ” क्या खुश हैं नहीं
जीवन जीने में तब क्या मज़ा
जीवन चक्र चलती रहेगी
सोच-विचार से क्या मज़ा
धन्य-दौलत के पीछे जाएं नहीं
शांति नहीं मिले तो क्या मज़ा
हाथ पर हाथ रखे रह गये
हाथ मलने से क्या मज़ा ।।