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दरभंगा/ नवगठित ‘संस्कृत शिक्षक परिवार’ द्वारा “संस्कृत : भूत, वर्तमान और भविष्य” विषयक ऑनलाइन विचारगोष्ठी आयोजित

✍️ हरिमोहन चौधरी, दरभंगा (बिहार)

 

सर्वश्रेष्ठ जीवन-पद्धति बताने वाली परिष्कृत एवं समृद्ध संस्कृत भाषा की कोरोना काल में बढा अंतरराष्ट्रीय महत्व – डा जयप्रकाश नारायण

देववाणी संस्कृत की स्थिति भूतकाल में चरमावस्था, वर्तमान में सुदृढ़ और भविष्य में समुन्नत- प्रो जीवानंद

ज्ञान-विज्ञान का अक्षय भंडार तथा रोजगारोन्मुख संस्कृत का भविष्य स्वर्णिम- प्रो रामनाथ

सार्थक वाद-विवादों की परंपरा से युक्त मिथिला रहा है सभी दर्शनों के विकास का केन्द्र- डा विकास सिंह

कम्प्यूटर हेतु सर्वाधिक उपयोगी संस्कृत में है विश्वभाषा बनने की पूरी क्षमता- डा मित्रनाथ

भारतीय संस्कृति का प्राण संस्कृत का महत्व सार्वदेशिक व सार्वकालिक- डा जयशंकर

दरभंगा : संस्कृत अमूल्य एवं अद्वितीय ज्ञान भंडार है जो प्रायः सभी भारतीय भाषाओं की जननी है। सर्वश्रेष्ठ जीवन-पद्धति बताने वाली परिष्कृत एवं समृद्ध संस्कृत भाषा का कोरोना काल में अंतरराष्ट्रीय महत्व काफी बढ़ गया है। भारत को विश्वगुरु बनाने में संस्कृत भाषा का सर्वाधिक योगदान रहा है। उक्त बातें जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के संस्कृत विभागाध्यक्ष डा जयप्रकाश नारायण ने नवगठित ‘संस्कृत शिक्षक परिवार’ के तत्वावधान में “संस्कृत : भूत वर्तमान और भविष्य” विषयक विचारगोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में कही । उन्होंने कहा कि संस्कृत की पढ़ाई मेडिकल, इंजीनियरिंग तथा प्रबंधन आदि क्षेत्रों में भी होनी चाहिए। नई शिक्षा नीति में संस्कृत को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है । यह मात्र भाषा नहीं, बल्कि सर्वश्रेष्ठ जीवन -पद्धति भी है, जिसका भविष्य उज्ज्वल है ।

अतिथियों का स्वागत करते हुए विश्वविद्यालय संस्कृत विभागाध्यक्ष प्रो जीवानन्द झा ने कहा कि देववाणी संस्कृत की स्थिति भूतकाल में चरमावस्था, वर्तमान में सुदृढ़ तथा भविष्य में समुन्नत है । इसमें उच्च उदात्त भावनाएं वर्णित हैं। उन्होंने विचारगोष्ठी के विषय को महत्वपूर्ण एवं प्रासंगिक बताते हुए कहा कि संस्कृत के अध्येताओं को आजीविका की कोई समस्या नहीं होती है।

अध्यक्षीय संबोधन में विश्वविद्यालय संस्कृत विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो रामनाथ सिंह ने कहा कि ज्ञान-विज्ञान का अक्षय भंडार तथा रोजगारोन्मुख संस्कृत का भविष्य स्वर्णिम है। यह मात्र साहित्य ही नहीं, बल्कि धर्म, संस्कृति एवं जीवन-पद्धति भी है। कम्प्यूटर तथा मीडिया के माध्यम से संस्कृत के ज्ञान-विज्ञान को प्रसारित करने की महती आवश्यकता है। संस्कृत के ज्ञान के बिना हमारा जीवन अधूरा है। संस्कृत के अध्ययन-अध्यापन से पूरे विश्व का कल्याण होगा।इसमें निहित जीवनोपयोगी ज्ञान को जन-जन तक पहुंचाने की जरूरत है।

मिथिला शोध संस्थान के पूर्व पांडुलिपि विभागाध्यक्ष डा मित्रनाथ झा ने कहा कि कम्प्यूटर हेतु सर्वाधिक उपयोगी संस्कृत में विश्वभाषा बनने की पूरी क्षमता मौजूद है। संस्कृत में मानवीय जीवन के प्रत्येक पक्ष की विस्तृत चर्चा है। यदि हमारे जीवन से संस्कृत ज्ञान को हटा दिया जाए तो हमारे पास कुछ भी नहीं बचेगा। उन्होंने विचारगोष्ठी को ऐतिहासिक बताते हुए कहा कि मिथिला में सर्वाधिक पांडुलिपियाँ उपलब्ध हैं जो ज्ञान-विज्ञान का खजाना है।

मारवाड़ी महाविद्यालय, दरभंगा के संस्कृत विभागाध्यक्ष डा विकास सिंह ने कहा कि मिथिला सार्थक वाद-विवादों की परंपरा से युक्त है जो लगभग सभी दर्शनों के विकास का केंद्र रहा है। संस्कृत और कंप्यूटर एक- दूसरे के पूरक हैं। आज सभी सॉफ्टवेयर कंपनियां संस्कृत के विद्वानों का भरपूर सहयोग ले रही हैं। संस्कृत विद्या अथाह है, जिसे समसामयिक रूप में प्रस्तुत करने की आवश्यकता है।

जेएनयू, दिल्ली के फ्रांसीसी भाषा के प्राध्यापक डा सुशांत मिश्र ने कहा कि पाली व प्रकृति का भी अध्ययन आवश्यक है, क्योंकि इसके बिना संस्कृत का विकास अधूरा रहेगा।

संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी के पूर्व संस्कृतविद्या के विभागाध्यक्ष प्रो राजीव रंजन सिंह ने कहा कि संस्कृत में कभी भी क्षेत्र-विवाद या बाध्य-बाधक भाव नहीं रहा है। संस्कृत पठन तप सदृश्य है जो हमारे पाठ्यक्रम का अनिवार्य भाग बने। संस्कृत के 2 शब्दों के अर्थ कभी भी एक नहीं होते हैं। अध्यापन कार्य एक मिशन होना चाहिए, न की नौकरी या पेशा।

सोगरा महाविद्यालय, बिहारशरीफ की संस्कृत प्राध्यापिका डा सुधा पांडे ने कहा कि संस्कृत से ही व्यक्तित्व-निर्माण एवं चरित्र-विकास संभव है। उन्होंने कंप्यूटर के मदद से संस्कृत के अध्ययन-अध्यापन व विकास की बात कही।

विचारगोष्ठी में कमला राय कॉलेज, गोपालगंज के संस्कृत विभागाध्यक्ष डा जीतेंद्र द्विवेदी, प्लस टू उच्च विद्यालय, रायपुर, सीतामढ़ी के संस्कृत शिक्षक डा ज्ञानरंजन गंगेश तथा प्लस टू परियोजना बालिका उच्च विद्यालय, बेनीपुर के संस्कृत शिक्षक डा राजेश्वर पासवान आदि ने भी विचार व्यक्त किए। विचारगोष्ठी में डा शिवकुमार मिश्र, डा अनीता गुप्ता, डॉ अलोक कुमार झा, डा शिशिर कुमार झा, डा प्रवीण शेखर झा, डा शशिकला यादव, डा अजय कुमार, लीना चौहान, डा भारती झा, जेएमडीपीएल कॉलेज, मधुबनी के डा घनश्याम महतो, मुजफ्फरपुर से डा दीनानाथ साह, डा संजीत कुमार झा, इग्नू,दरभंगा के निदेशक डा शंभू शरण सिंह, डा वैद्यनाथ मिश्र, डा मुरारी शरण, वाराणसी से डा ममता पांडे, पटना से डा ज्योत्सना, जौनपुर से से डा विनय दुबे, एमएलएसएम कॉलेज के पूर्व प्रधानाचार्य प्रो विद्यानाथ झा, अमरेश चौरसिया, अमिताभ सिंह सहित 80 से अधिक संस्कृत शिक्षकों व छात्रों ने भाग लिया।

सी एम कॉलेज, दरभंगा के संस्कृत विभागाध्यक्ष एवं कार्यक्रम के संयोजक डा आर एन चौरसिया के संचालन में आयोजित ऑनलाइन विचारगोष्ठी में कमला नेहरु कॉलेज, नई दिल्ली की संस्कृत प्राध्यापिका डा मैत्रेयी कुमारी ने धन्यवाद ज्ञापन किया।