कविता/ कान्हा से प्रेम
कान्हा से मीरा को प्रेम हो गया,
हो गई मगन सब जान ही गया।
कान्हा की मूड़त हृदय में बसी।
पूजा उन्ही की ओ करने लगी ।
उठाई वीणा भजन गाने लगी,
सुध बुध खोई भजन में लगी।
दोनों हाथों से कान्हा की मूड़त लिए,
हर जगह घुम -घुम कर दिखाने लगी।
लगी बहुत लांछन पर न घबराई,
जहर की घूंट ओ पी ही गई ।
कान्हा कृपा से कुछ न हुआ
अमृत बन गया मीरा जी ही गई।
मीरा भजन जग जाहिर हुआ,
कान्हा मीरा प्रेम अमर हो गया।