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कविता/ नारी तू नारायणी, सम्पूर्ण सृष्टि की प्राणाधार

नारी तुम हो बड़ी महान,सम्पूर्ण जगत की श्रद्धा हो।
हर काल खंड में पूजनीय, जन मानस की श्रद्धा हो।

तू जननी है तू पालक है,तू सम्पूर्ण सृष्टि की आधार।
मनु धरा के प्रथम पुरुष,नारी सतरूपा हैं प्राणाधार।

निःस्वार्थ प्यार की जीती जागती,नेह स्नेह की मूरत।
नारी तुम तो हो ममता,त्याग एवं बलिदान की मूरत।

तुम बिन तो सृष्टि का इतना,सुंदर सृजन नहीं संभव।
दुनिया में परिवार वृद्धि औ,सुख समृद्धि नहीं संभव।

तुम्हीं केंद्र हो आकर्षण का,तीनों लोकों का आधार।
तेरे सबल साथ से संभव है,हर सपना होता साकार।

तुम्हीं केंद्र बिंदु हो जगत की,तुम्हीं से सम्पूर्ण संसार।
कोई रचना नहीं है संभव,हर सृजन का तुम आधार।

बेटी बन कर घर में जन्में,नवजीवन की रचती माया।
मात-पिता घर खुशियाँ बांटे,देती सदा शीतल छाया।

बहू बने तो परिवार बढ़ाये,ये ससुराल में रौनक लाए।
वंस वृद्धि समृद्धि कल्पे,नई पीढ़ी की ज्योति जलाए।

बिना वृक्ष के धरा न संभव,जल बिन न नदी सरोवर।
जग जननी बिना न संभव,नारी बिना नकोई धरोहर।

ये नारी भूखी नहीं किसीभी,बेटी महिला दिवस की।
नारी है भूखी सम्मान की,वो शिकार बनी हबस की।

जीवन भर घर काम करे,लेती नहींहै कोई अवकाश।
वेतन रूपी मान चाहे,वेतनवृद्धि में सम्मान ही आस।

ममता त्याग प्यार समर्पण,सेवा भाव नारी का काम।
दुःख दर्द अपमान सहे ये,फिरभी तत्पर रहे निष्काम।

नारी गुलाम किसीकी नहीं है,पिता भाई पति संतान।
बढ़-चढ़ कर्म जो करती नारी,पातीहै खुदही सम्मान।

यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः।
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफला क्रियाः।

जहां स्त्रियों का आदर होता वहां देवता रमण करते।
जहां आदर नहीं होता वहां सब काम निष्फल करते।

इस लिए स्त्रियों को नारायणी भी हम सब हैं कहते।
इस लिए स्त्रियों को नारायणी भी हम सब हैं कहते।

नारी तू नारायणी नारी तू नारायणी नारी तू नारायणी।
नारी तू नारायणी नारी तू नारायणी नारी तू नारायणी ।