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कविता/ योग का मूल मंत्र


सभी रहें हमेशा मस्त-मस्त
कभी ना हो अस्त – अस्त

हरदम प्यार बांटते रहें
सुबह में योग करते रहें

रोग को प्रास्त करते रहें
अपनी विचार बांटते रहें

कितना सुंदर यह सफर है
शरीर में ना उल्टा असर है

मन प्रश्रन्न रहता है हर- दम
नहीं लगाना पड़े कभी मलहम

दवा का उपयोग करना नहीं पड़े
बैद्य के यहाँ कभी जाना नहीं पड़े

यही है योग का मूल आधार
धीरे-धीरे होते गए इसमें सुधार

लोग इसमें सम्मिलित होते गए
योग का महत्व काफी बढ़ते गए

सुन लो हमारी भी ये बड़े पैगाम
मूल मंत्र अगर मानो तो है व्यायाम

योग का यहाँ पर यह एक झांकी है
विस्तृत मूल मंत्र तो अभी बाकी है

है तो इसका सही में विस्तृत प्रभाव
जीवन में नहीं खटके इसका अभाव

पटना के वड़े वकील की है फरमान
मेरे प्रिय मित्र जिवेस्वर लाभ महान

वरिष्ठ कवि”सुरेश कंठ”भी मान गए
योग का मूल मंत्र कुछ समझ गए ।