कविता/ श्रद्धांजलि पत्र (प्रसिद्ध पत्रकार स्व0 रोहित सरदाना को समर्पित)
✍️ सुधांशु पांडे “निराला”
उत्पीड़न को बढ़ावा देना है;
खुशियों का खामोश हो जाना।
अचानक मुरझा जाते हैं
हंसते मुस्काते फूल,
आईने पर छोड़कर
जमी जमाई धूल,
अब;अफसाने को गीत समझो;
और गीत को अफसाना।
उत्पीड़न को बढ़ावा देना है;
खुशियों का खामोश हो जाना।
काफिर का चलते-चलते
इस तरह थकना,
क्या बताऊं मैं;ना रोना
आ रहा है ना हंसना,
वीणा के तार टूटने दो;
मुझे भूल जाने दो बजाना।
उत्पीड़न को बढ़ावा देना है;
खुशियों का खामोश हो जाना।
कौन खुशियाँ भरेगा
अब की ईद में,
चरा़ग जलाया जाए
किस उम्मीद में,
कौन डालेगा आँगन में;
कबूतरों को दाना।
उत्पीड़न को बढ़ावा देना है;
खुशियों का खामोश हो जाना।
एकाध इच्छा और थी
इस जिंदगानी से,
आखिर निकाल उठे
हम भी कहानी से,
क्या करोगें परिस्थिति का?
चाहे गालियाँ दो चाहे ताना।
उत्पीड़न को बढ़ावा देना है;
खुशियों का खामोश हो जाना।
सिर्फ अनुभव करने की
आदत डालो,
हमेशा लड़ना होगा
अंधेरे से उजालो,
भले स्वभाव है आपका
चमकना चमकाना।
उत्पीड़न को बढ़ावा देना है;
खुशियों का खामोश हो जाना।।
सुधांशु पांडे “निराला”
प्रयागराज (उ.प्र.)