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विशेष/ गाँधी एवं शास्त्री जयंती 2 अक्टूबर (एक विशेष लेख)*

प्रत्येक वर्ष 02 अक्टूबर की तारीख को हमारे देश में महात्मा गाँधी (मोहन दास कर्मचंद गांधी) एवं अत्यंत कर्मठ,सुयोग्य पूर्व प्रधानमंत्री “जय जवान-जय किसान” का नारा देने वाले कायस्थ शिरोमणि,स्व.श्री लाल बहादुर शास्त्री जी के जन्म दिवस को हम सभी *गाँधी-शास्त्री जयन्ती* के रूप में बड़े ही हर्षोल्लाष के साथ धूम-धाम से मनाते हैं। यहाँ इस लेख के माध्यम से आइये जानते हैं कुछ और भी बहुत जरुरी बातें जो इस दिवस विशेष 2 अक्टूबर अर्थात दोनों महान विभूतियों के जन्म दिवस से सम्बंधित है। हम गाँधी-शास्त्री जयन्ती पर,भारत के इन महान दोनों विभूतियों को याद करते हुए अपना श्रद्धा सुमन समर्पित करते हैं। कोटि-कोटि नमन करते हैं।

महात्मा गाँधी जी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात प्रांत के पोरबंदर में एक धनी परिवार में हुआ था। आप के पिता का नाम करमचंद गाँधी एवं माता का नाम पुतली बाई था। गाँधी जी को 30 जनवरी 1948 को लगभग 80 वर्ष की अवस्था में नाथू राम गोडसे द्वारा देश की राजधानी दिल्ली के बिरला मंदिर परिसर में गोली मार कर उनकी नृशंस हत्या कर दी गई थी।
हमारे देशवासी प्रत्येक वर्ष उनका जन्म दिवस 2 अक्टूबर गाँधी जयन्ती के रूप में इसे मनाते हैं।
गाँधी जी सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चल कर देश को अंग्रेजों के गुलामी से आजाद कराया था। भारत की आजादी में गाँधी जी के अतुलनीय योगदान को देखते हुए हम भारतीयों द्वारा उनको भारत के “राष्ट्रपिता” के नाम से भी कहते,जानते हैं। यहाँ आपको यह भी जानना जरुरी है,गाँधी जी को राष्ट्रपिता कह कर किसने प्रथम सम्बोधन किया था ?आजाद हिंद फौज के संस्थापक नेता जी श्री सुभाष चंद्र बोस ने सब से पहले महात्मा गाँधी जी को एक मीटिंग में “राष्ट्रपिता” कह कर संबोधित किया था। उसी मीटिंग के बाद से ही भारत के जन सामान्य द्वारा भी गाँधी जी को अन्य लोगों द्वारा भी राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी कहा जाने लगा। गाँधी जी सब से पहले दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद की मुखालफत करने वाले नेता बन कर उभरे,बाद में भारत के स्वतंत्रता संघर्ष और संग्राम को अहिंसात्मक तरीके से अपना नेतृत्व प्रदान किया। वह अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ पूरे भारत में सत्याग्रह और अहिंसा का तरीका अपनाते हुए अंग्रजों के खिलाफ गाँधी जी ने सत्याग्रह किया,तथा भारत में असहयोग और सविनय अवज्ञा आंदोलन का संचालन किया। इसी बल पर उन्होंने भारत को 200 साल की गुलामी से आजादी दिलाई। रक्तहीन क्रांति से भारत देश को सम्पूर्ण आजादी दिलाने की वजह से उन्हें सारे भारतवर्ष में बड़े आदर व सम्मान के साथ याद किया जाता है। सिर्फ भारतवर्ष में ही नहीं सम्पूर्ण विश्व में उन्हें उनकी जयंती पर बड़े आदर व श्रद्धा के साथ याद और नमन किया जाता है। इसी लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी “गांधी जयंती” को लोगों द्वारा “अहिंसा दिवस” के रूप में विदेशों में भी इसे बड़े उत्साह के साथ मनाते है, याद करते हैं और अपना श्रद्धा सुमन समर्पित करते हैं।

इसके अलावा हमारे देश के एक अन्य परम महान,साहसी,योद्धा, कर्मयोगी,ईमानदार,सादगी पूर्ण जीवन जीने वाले भारत के अग्रणी नेता हमारे देश के द्वितीय प्रधानमंत्री स्व.श्री लाल बहादुर शास्त्री जी का भी जन्म 2 अक्टूबर 1904 को उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले के मुगलसराय में हुआ था। इनके पिता का नाम मुंशी शारदा प्रसाद श्रीवास्तव एवं माता का नाम श्रीमती राम दुलारी था। इनके पिता जी एक स्कूल में शिक्षक थे,और माता जी एक सीधी सादी सामान्य गृहणी। लाल बहादुर शास्त्री जब केवल डेढ़ वर्ष के ही थे तभी उनके पिता जी का देहांत हो गया था। उनकी माँ तब अपने सभी बच्चों को लेकर अपने पिता के घर आकर रहने लगीं। लाल बहादुर की स्कूली शिक्षा कुछ खास नहीं रही,वे कई मील की दूरी नंगे पाँव ही तय कर अपने विद्यालय पढ़ने जाते थे। यहाँ तक कि भीषण गर्मी में भी जब सड़कें अत्यधिक गर्म हो जाया करती थीं, तब भी उन्हें पढ़ने ऐसे ही जाना पड़ता था। लेकिन गरीबी की मार पड़ने के बावजूद भी उनका बचपन पर्याप्त रूप से खुशहाल एवं ठीक-ठाक बीता। शास्त्री जी को बाद में उन्हें वाराणसी शहर में उनके चाचा के साथ रहने के लिए भेज दिया गया,ताकि वह उच्च विद्यालय में शिक्षा ग्रहण कर सकें। धीरे-धीरे बड़े होने के साथ ही लाल बहादुर शास्त्री जी विदेशी दास्ता से आजादी के लिए देश में हो रहे संघर्ष में अधिक रुचि रखने लगे। वे भारत में ब्रिटिश शासन का समर्थन कर रहे कई भारतीय राजाओं की महात्मा गाँधी द्वारा की गयी निंदा से अत्यंत प्रभावित हुए।
शास्त्री जी जब मात्र 11 वर्ष के ही थे तभी से वह राष्ट्रीय स्तर पर देश के लिए कुछ करने का मन बना लिया था। महात्मा गाँधी जी ने जब अपने देशवासियों से असहयोग आंदोलन में शामिल होने के लिए आह्वान किया तो शास्त्री जी ने भी अपनी पढ़ाई छोड़ देने का निर्णय कर लिया और मात्र 16 वर्ष की आयु में ही अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन में सक्रिय रूप से कूद पड़े। उनके इस निर्णय ने माँ जी सारी उम्मीदें तोड़ दीं,उनके परिवार ने उनके इस निर्णय को गलत बताते हुए उन्हें रोकने की बहुत कोशिश की,किन्तु वे इन्हें रोक पाने में सर्वथा असफल रहे, क्योंकि लाल बहादुर ने अपना पक्का मन बना लिया था। यह बात उनके सभी करीबियों को भी मालूम था कि शास्त्री जी एक बार किसी बात के लिए अपना मन बना लेने के बाद वह अपना निर्णय कभी नहीं बदलेंगें। श्री लाल बहादुर जी बाहर से जितना विनम्र दिखते थे,वास्तव में अंदर से वे उससे ज्यादा एक चट्टान की तरह ही अडिग और दृढ़ थे।
1927 में उनकी शादी निकट के शहर मिर्जापुर के कायस्थ परिवार की बेटी ललिता देवी के साथ में सम्पन्न हो गई। शास्त्री जी ने उस समय अपनी शादी में दहेज़ के नाम केवल एक चरखा एवं हाथ से बनाये /बुने हुए कुछ मीटर कपड़े के अलावा कुछ भी नहीं लिया। शास्त्री जी की शादी सभी तरह से पारंपरिक रूप में हुई।

1930 में महात्मा गाँधी ने अंग्रेजों के नमक कानून को तोड़ने हेतु दांडी यात्रा की थी,इस प्रकार के प्रतीकात्मक सन्देश ने पूरे देश में एक तरह की क्रांति ला दी। लाल बहादुर शास्त्री जी बहुत विह्वल थे,वह ऊर्जा के साथ स्वतंत्रता के इस संघर्ष में शामिल हो गए। शास्त्री जी ने कई विद्रोही आंदोलनों का नेतृत्व भी किया और वह इसके लिए कुल 7 वर्षों तक ब्रिटिश जेलों में भी बंद रहे।आजादी के इस संघर्ष ने उन्हें पूर्णतः परिपक्व बना दिया। सम्पूर्ण रूप से आजादी मिलने के बाद जब कांग्रेस सत्ता में आई, उससे पहले ही राष्ट्रीय संग्राम के इस तेजतर्रार,दृढ़ प्रतिज्ञ किन्तु विनम्र और उच्च आचरण के इस योग्य नेता लाल बहादुर शास्त्री के महत्त्व को लोग भली-भाँति जान समझ चुके थे। 1946 में जब कांग्रेस सरकार का गठन हुआ तो इस छोटी कद काठी वाले “डायनमो” को भी देश के शासन में रचनात्मक भूमिका निभाने के लिए कहा गया। उन्हें अपने गृह राज्य उत्तर प्रदेश तत्कालीन अवध प्रान्त का संसदीय सचिव नियुक्त किया गया और जल्द ही कुछ दिन बाद वे प्रान्त के गृह मंत्री के पद पर आसीन हुए। शास्त्री जी की इस कड़ी से कड़ी मेहनत करने की उनकी क्षमता,दक्षता और कार्यकुशलता ने उत्तर प्रदेश में एक उदाहरण ही नहीं प्रस्तुत किया बल्कि एक लोकोक्ति बन गई।

1951 में लाल बहादुर शास्त्री जी को दिल्ली बुला लिया गया और केंद्रीय मंत्रिमंडल के कई विभागों का कार्य प्रभार सौंपा गया,जिसे उन्होंने बखूबी निभाया। देश के रेलमंत्री,परिवहन मंत्री,संचार मंत्री, उद्योग मंत्री,वाणिज्य मंत्री और गृह मंत्री के रूप में देश की बहुत ईमानदारी एवं पूर्ण निष्ठा के साथ देश सेवा का कार्य किया। पंडित जवाहर लाल नेहरू जी के बीमार रहने के दौरान बिना विभाग के भी मंत्री के रूप में शास्त्री जी ने देश को अपनी सेवाएं प्रदान की। शास्त्री जी की प्रतिष्ठा देश में लगातार बढ़ती जा रही थी। शास्त्री जी के रेल मंत्रित्व काल में हुई एक रेल दुर्घटना,जिसमें कई लोगों की जानें गयी थीं,उसके लिए वे रेल विभाग का उच्च पदस्थ मंत्री होने के नाते चरित्रवान लाल बहादुर शास्त्री जी ने स्वयं को इसका जिम्मेदार मानते हुए रेल मंत्री के धारित पद से तत्काल स्तीफा दे दिया था। रेल दुर्घटना पर संसद में लंबी बहस का जवाब देते हुए लाल बहादुर शास्त्री ने कहा था कि शायद लंबाई में छोटे होने एवं स्वाभाव से विनम्र होने के कारण लोगों को लगता है कि मैं बहुत दृढ़ नहीं हो पा रहा हूँ। यद्यपि कि शारीरिक रूप से मैं मजबूत नहीं हूँ लेकिन मुझे लगता है कि मैं आतंरिक रूप से इतना कमजोर भी नहीं हूँ। देश और संसद ने उनके उच्च आदर्श और इस्तीफे के इस अभूतपूर्व पहल की काफी सराहना किया। तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित नेहरू जी ने संसद में बोलते हुए लाल बहादुर शास्त्री के इस उच्च सोच,उनके अनुकरणीय आचरण,ईमानदारी,आदर्श और इस कर्तव्यनिष्ठा की काफी तारीफ भी की थी। उस समय उन्होंने कहा कि मैंने रेल मंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी का इस्तीफा इसलिए नहीं स्वीकार किया है कि जो भी हुआ है वह उसके लिए स्वयं को जिम्मेदार समझते हैं,बल्कि इसलिए स्वीकार किया कि शास्त्री जी के इस मानवीय संवेदना पूर्ण कृत्य से इस्तीफा दे देने से भारतीय लोकतंत्र की संवैधानिक मर्यादा में एक बहुत बड़ी मिसाल कायम होगी।

लाल बहादुर शास्त्री जी जैसे परम राष्ट्र भक्त महान कर्मठ नेता को कौन नहीं जानता है। उन्हें कभी किसी परिचय की जरुरत नहीं है। पंडित नेहरू जी की मृत्यु के बाद वे 1964 में हमारे देश के द्वितीय प्रधान मंत्री बने। उन्होंने अपने देश वासियों को “जय जवान-जय किसान” का हमें एक सार्थक और प्रभावशाली नारा दिया। उनके नारे के अनुरूप सभी भारत वासियों ने अपना-अपना व्यक्तिगत त्याग,बलिदान और समर्पण भी किया। शास्त्री जी महात्मा गाँधी के उन समर्थकों में से थे,जो हमेशा उनके विचारों और मूल्यों का आदर किया करते थे। वह महात्मा गाँधी के साहस और अहिंसा नीति से काफी प्रभावित थे। महात्मा गाँधी का उन पर यह प्रभाव ही था,कि देश के आजादी की लड़ाई में शास्त्री जी बहुत कम उम्र में ही शामिल हो गए थे।
यद्यपि कि बचपन से ही देश की आजादी के प्रति उनका खासा लगाव था। बड़े होते हुए उनके अंदर इतिहास का जुनून सवार था,जिसमें हमारे स्वामी विवेकानंद जी की शिक्षायें भी शामिल थीं,जिनसे उन्हें शांति की प्रेरणा मिली। शास्त्री जी के जीवन पर एनी बेसेंट के जीवन ने भी अपनी गहरी छाप छोड़ी। गाँधी जी से तो लाल बहादुर शास्त्री जी इतने प्रभावित थे कि गाँधी जी के असहयोग आंदोलन में सरकारी विद्यालयों को छोड़ने के आह्वान पर उन्होंने अपनी पढ़ाई तक छोड़ दी थी,और वे अगले ही दिन असहयोग आंदोलन में भी शामिल हो गए। इसके बाद वह सदैव स्वतंत्रता संघर्षों में हिस्सा लेते रहे,उसी में लगे रहे। बाद में शास्त्री जी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक महत्वपूर्ण सदस्य बन गये।

बाबू शिव प्रसाद गुप्ता और भगवान दास द्वारा 1921 में काशी विद्यापीठ विश्वविद्यालय की स्थापना की गयी,जहाँ से शास्त्री जी ने अपनी आगे की पढ़ाई एवं परीक्षा उत्तीर्ण करते हुए शास्त्री की उपाधि प्राप्त करने वाले एक सफल छात्र बने। हालाकि देश की इतनी सेवा करने के बाद भी उन्हें अन्य नेताओं की अपेक्षा कम सम्मान एवं पहचान मिला। यह उनका नहीं वरन देश का दुर्भाग्य था। सारा देश उनके बारे में यही जानता है कि वह भारत के दूसरे प्रधानमंत्री थे और कांग्रेस के चुने हुए कुछ वरिष्ठ नेताओं में से एक थे। शास्त्री जी एक बहुत ही क्षमतावान,दृढ़प्रतिज्ञ,साहसी,निडर, निर्भीक, ईमानदार व्यक्तित्व के धनी एवं प्रसिद्ध व्यक्ति थे। उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन ही बहुत ही सादगी और उच्च विचार धारक के रूप में सामान्य जीवन जीते हुए इसे मातृभूमि की सेवा के लिए समर्पित कर दिया। इसलिए उनके महान जीवन और व्यक्तित्व के बारे में जानना हम सब के लिए बहुत जरुरी है।

हमारे द्वितीय प्रधानमंत्री स्वर्गीय श्री लाल बहादुर शास्त्री जी अपने परिवार में सब से छोटे थे,इसलिए सभी प्यार से उन्हें नन्हे भी कह कर बुलाते थे। वास्तव में शास्त्री जी का असली नाम लाल बहादुर श्रीवास्तव था जिसे उन्होंने अपने विश्वविद्यालय से प्राप्त “शास्त्री” की उपाधि से जोड़कर हमेशा के लिए बदल दिया। वे शास्त्री जी के नाम से ही जाने जाने लगे। शास्त्री जी एक क्रन्तिकारी व्यक्ति थे और इनके द्वारा ही “मरो नहीं मारो” का भी नारा दिया गया था। इससे देश में क्रांति की भावना जाग उठी थी और उसने बड़ा प्रचंड रूप ले लिया। इसके लिए शास्त्री जी को जेल भी जाना पड़ा था।इन्होंने देश को आजादी दिलाने में अपनी अहम् भूमिका निभाई। वे कोई एक बार नहीं बल्कि कई बार जेल भी गए। शास्त्री जी एक चरित्रवान,सच्चे और ईमानदार राजनेता थे। भारत की जनता भी उन्हें बहुत चाहती थी और उन्हें प्रेम करती थी।

आजादी के बाद उनकी साफ सुथरी छवि को देखते हुए ही उन्हें पंडित जवाहर लाल नेहरू के बाद भारत का द्वितीय प्रधानमंत्री बनाया गया था। उनके सफल मार्गदर्शन एवं नेतृत्व में हमारा देश काफी आगे बढ़ा। अनाजों के कीमतों में कटौती,भारत-पाकिस्तान की लड़ाई में सेना को खुली छूट देना आदि शास्त्री जी द्वारा देश हित में लिए गए विद्वता पूर्ण निर्णय और राजनीतिक योग्यता का परिचायक है।

देश हित के लिए उन्होंने एक बार रूस जाने का फैसला किया, और वहाँ ताशकंद समझौता किया।दूसरे दिन उन्हें भारत लौटना था,किन्तु ताशकंद में उसी रात ही 11 जनवरी 1966 को उनकी रहस्यमयी तरीके से मौत हो गयी। शास्त्री जी की रहस्यमयी मौत कैसे हुई ? इस रहस्य का आज तक पता नहीं लगा। यह हम सब का बहुत बड़ा दुर्भाग्य और हमारी असफलता है।
उनके सत्यनिष्ठा,कर्मठता,सरलता,निडरता और देशभक्ति के ही कारण उन्हें देशवासियों द्वारा हमेशा याद किया जाता था,याद किया जाता है और सदैव याद किया जाता रहेगा। उनकी मृत्यु के पश्चात उन्हें भारत देश के सर्वोच्च सम्मान “भारत रत्न” के सम्मान से नवाजा गया। लाल बहादुर शास्त्री जी एक सच्चे,निडर,साहसी, चरित्रवान और ईमानदार राजनेता थे।उनका नाम भले ही इतिहास के पन्नों में दर्ज हो,किन्तु भारतीयों के दिलों,दिमाग और स्मृति में वह सदा-सदा ही जीवित रहेंगें।

भारत के स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान शास्त्री जी को एक,दो बार नहीं कई बार जेल भी जाना पड़ा। लेकिन इससे उनके हौसले में कोई भी कमी नहीं आई,यही उनकी सब से बड़ी ताकत थी,जो आज शास्त्री जी को दूसरों से अलग बनाती है। जेल में रहने के दौरान उन्हें कई पश्चिमी क्रांतिकारियों और महान दार्शनिकों के बारे में पढ़ने/अध्ययन करने का सुअवसर भी मिला। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात वह संयुक्त प्रान्त अर्थात वर्तमान उत्तर प्रदेश के प्रथम गृह मंत्री और 1947 के साम्प्रदायिक दंगों की रोकथाम, शरणार्थियों को बसाने में भी अपनी अहम् और सार्थक भूमिका निभाई। उनके इस कार्य की सब से खास बात यह थी,कि इसके लिए शास्त्री जी ने कभी कोई बल नहीं प्रयोग किया। शास्त्री जी के नेतृत्व क्षमता का यह सब से बड़ा प्रत्यक्ष उदाहरण,प्रमाण था। भारत का प्रधान मंत्री बनने के बाद उन्होंने कहा कि वह एक ऐसा भारत बनाएंगे जहाँ लोगों की स्वतंत्रता और ख़ुशी से कोई समझौता नहीं होगा।

शास्त्री जी का एक मात्र लक्ष्य हमारे देश भारत को धर्मनिरपेक्ष और मिश्रित अर्थव्यवस्था के साथ-साथ एक लोकतांत्रिक व्यवस्था वाला देश बनाना था,जिसके लिए उनके द्वारा किये गए प्रयासों हेतु उन्हें लोग आज भी याद करते हैं। अपनी नीतियों के अलावा उन्हें एक ऐसे व्यक्ति के रूप में जाना जाता है जिनका भारत के विकास हेतु लिये गए महत्वपूर्ण फैसलों में अहम् योगदान रहा है। देश में शुरू हुए हरित क्रांति और दुग्ध क्रांति के पीछे शास्त्री जी का ही योगदान रहा है। देश में कृषि उत्पादन को बढ़ाने व किसानों के शोषण को रोकने के लिए ही उन्होंने “जय जवान जय किसान” का नारा दिया था। शास्त्री जी ने देश में उत्पन्न हुए खाद्य संकटों और अकाल की स्थिति का भी बहुत अच्छी तरह से सामना किया और देश का स्वाभिमान बनाये रखा। शास्त्री जी ही वह महान व्यक्ति और ऐसे राजनेता थे,जिन्होंने युद्ध की विषम स्थिति में भी देश के अंदर शान्ति व्यवस्था को बनाये रखा। भारत-पाक युद्ध के दौरान वह दोनों देशों के बीच एक समझौता चाहते थे,ताकि दोनों देशों के बीच शान्ति स्थापित हो सके और लड़ाई को भी रोका जा सके। शास्त्री जी की ऐसी सोच और बड़े प्रयास को सफलता भी मिली। भारत-पाकिस्तान दोनों देशों के बीच युद्ध विराम का एक समझौता भी हुआ। यही वजह है कि हम शास्त्री जी को देश के इतिहास में सबसे महान प्रधान मंत्रियों में से एक मानते हैं।

यहाँ मैं शास्त्री जी के ईमानदार व्यक्तित्व और सादगी भरे जीवन के बारे में एक और बात का जिक्र करना चाहूँगा। वैसे तो उनके सादगी के बारे में बहुत से ऐसे किस्से और उदहारण हैं जिसे इस लेख में प्रस्तुत किया जा सकता है किन्तु उन्हीं में से एक बेहद मार्मिक और अनुकरणीय बात यहाँ जरूर बताना चाहूँगा और वह यह है कि जब वह देश के इतने बड़े सम्मान जनक पद प्रधानमंत्री के पद पर आसीन हुए तो उनके परिवार वाले उनसे एक कार लेने को कह रहे थे,इस विषय में उन्होंने अपने सेक्रेटरी को बताया और उनसे फिएट कार का दाम पता करने को कहा। उस समय फिएट कार का मूल्य 12000/- हजार रुपये था,लेकिन शास्त्री जी के बैंक खाते में उस समय मात्र 7000/- रूपये ही थे। इसलिए उन्होंने सरकारी फण्ड से पैसे लेने के बजाय पंजाब नेशनल बैंक से 5000/- रुपये के लोन का आवेदन किया,जो मात्र दो घंटे में ही पास हो गया।
इस बात से हैरान शास्त्री जी ने बैंक के लोन अधिकारी को अपने कार्यालय में बुलाया और उनसे पूछा कि क्या अन्य लोगों का लोन भी मेरी तरह ही इतनी शीघ्रता और आसानी से पास होता है। बड़े विनम्रता के साथ शास्त्री जी ने बैंक के लोन अधिकारी से अपनी बात कह बैंक लोन के नियमों के बारे में पूरी जानकारी मांगी और उससे अवगत हुए। यह चरित्र,सादगी,विनम्रता,ईमानदारी और ऐसा उच्च विचार केवल और केवल हमारे लाल बहादुर शास्त्री जी जैसे राजनेता और प्रधानमंत्री में ही हो सकती है,किसी अन्य में तो शायद बिलकुल भी नहीं।

शास्त्री जी कद काठी में भले ही छोटे रहे हों किन्तु उनकी सादगी, विलक्षण प्रतिभा,बुद्धि,विवेक,लोक प्रशासन की अद्भुत क्षमता और नेतृत्व करने का कौशल कुछ इस तरह का रहा है,कि उनके शासन काल में सन 1965 में छिड़े हुए भारत-पाक युद्ध में न सिर्फ भारत को विजय प्राप्त हुयी बल्कि वह दोनों देशों के बीच किये गए एक आपसी लिखित समझौते द्वारा इस युद्ध का समाधान निकालने और उसको विराम देने में भी पूर्ण सफल रहे। अपने बुद्धि और नेतृत्व क्षमता के कारण वह देश को विभिन्न कठिन परिस्थितियों से आगे भी निकालने में सफल रहे।

शास्त्री जी सदैव से ही पंडित जवाहर लाल नेहरू के प्रशंसक रहे। उनका यह मानना था कि हमारा देश तेजी से आगे बढ़े,इसके लिए औद्योगिकीकरण कर के ही गरीबी और बेरोजगारी से मुक्ति पाया जा सकता है। उनकी ये सोच थी कि विदेशी आयात की अपेक्षा अपने देश को सही तरीके से स्वावलम्बित करना इस देश की तरक्की के लिए अधिक कारगर विकल्प सिद्ध होगा। हमें तो यह कहने में गर्व का अनुभव होता है कि शास्त्री जी राजनैतिक और आर्थिक मामलों में अपने समय से कहीं आगे की सोच रखने वाले राजनेताओं में से एक थे। उन्होंने देश में तरक्की व खुशहाली लाने के लिए कई अन्य देशों के साथ समझौते किए। विदेश नीति को बेहतर करने का सार्थक और सफल प्रयास किया। उनके इन्हीं सोच और कार्यों ने देश को तरक्की के मार्ग पर आगे बढ़ाने का कार्य किया।

शास्त्री जी अपने मंत्रालय के सभी कामकाज के साथ ही साथ कांग्रेस पार्टी से भी सम्बंधित सभी जरुरी मामलों को समय-समय पर देखते रहे हैं,और उसमें अपना भरपूर योगदान दिया। 1952, 1957 एवं 1962 के आम चुनावों में तो कांग्रेस पार्टी की सभी निर्णायक एवं जबरदस्त सफलता में उनकी विशेष सांगठनिक प्रतिभा और चीजों को नजदीक से परखने की उनकी एक अद्भुत क्षमता का बहुत बड़ा योगदान था। 30-35 वर्षों की अपनी इस समर्पित देश सेवा के दौरान लाल बहादुर शास्त्री जी की अपनी उदारता,उदात्त निष्ठा,क्षमता,कार्य कुशलता और नेतृत्व के लिए लोगों के बीच वे काफी प्रसिद्ध हो गए। उनमें विनम्रता,दृढ़ संकल्प शक्ति,सहिष्णुता एवं जबरदस्त आतंरिक शक्ति की क्षमता थी।शास्त्री जी लोगों के बीच ऐसे व्यक्ति बन कर उभरे जिन्होंने लोगों की जन भावनाओं को दिल से समझा। वे एक महान और दूरदर्शी राजनेता थे जो देश को प्रगति के मार्ग पर लेकर आये। लाल बहादुर शास्त्री महात्मा गाँधी के राजनीतिक शिक्षाओं से इतना प्रभावित थे कि अपने गुरु गाँधी जी के ही लहजे में एक बार एक जगह उन्होंने कह दिया था “मेहनत प्रार्थना करने के सामान है” महात्मा गाँधी के सामान ही विचार रखने वाले लाल बहादुर शास्त्री जी भारतीय संस्कृति के संवाहक,उसकी श्रेष्ठ पहचान और भारत माता की नेक संतान तथा भारत के नागरिकों में जन-जन के हृदय में वास करने वाले एक बहादुर इंसान थे।

गाँधी एवं शास्त्री जयंती के इस पावन सुअवसर पर मैं अपने दोनों श्रेष्ठ और पूज्यनीय महान राष्ट्रीय विभूतियों को अपने हृदय की गहराइयों से श्रद्धा सुमन समर्पित करते हुए उन्हें कोटि-कोटि नमन एवं वंदन करता हूँ और अपनी विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ।

जय हिन्द। जय भारत।
जय गाँधी जी। जय शास्त्री जी।
जय जवान। जय किसान। जय हिंदुस्तान।