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विशेष/ रक्षाबंधन या राखी या श्रावणी का पावन त्योहार व मान्यताएँ

हमारा भारत देश प्राचीनतम सनातन हिन्दू धर्म, संस्कृति एवं
सभ्यता का पालन एवं निर्वहन करने वाला, विभिन्न धर्मों का पालन करने, मानने वालों और गंगा जमुनी तहजीव से रहने वाले प्रेम एवं भाई चारे से ओत- प्रोत,शांति, अहिंसा पसंद मानसिकता के सभ्य नागरिकों से भरा हुआ । सब का सामान आदर करने वाला दुनिया का सबसे बड़ा और सफल लोकतान्त्रिक देश है। भारत में हिन्दू धर्म के विभिन्न पर्व तो बहुतायत में बड़े हर्ष और उल्लास के साथ मनाये ही जाते हैं, बल्कि यहाँ सभी धर्मों के त्योहारों को समान आदर और उत्साह के साथ पूर्ण स्वतंत्रता के साथ त्योहारों का आयोजन, प्रयोजन और खुशियों के साथ सब मिलजुल कर सदभावना एवं प्रेम पूर्वक मानते आए हैं।

त्योहारों के इसी कड़ी में हमारे देश में रक्षाबंधन पर्व भाई- बहन के अतुलित स्नेह, प्रेम,प्यार का एक महत्वपूर्ण त्योहार है जो कि सदियों से मनाया जाता चला रहा है। इसमें बहनें अपने भाईयों को उसकी कलाई में राखी बाँधती है और भाई अपने बहन को उपहार और आशीर्वाद देता है, उसकी रक्षा का वचन भी देता है । बहन, भाई की लम्बी उम्र की ईश्वर से कामना करती है कि वह दीर्घायु रहे। भाई- बहन के नेह, स्नेह, प्रेम और सौहार्द का ये बड़ा मधुर और महत्वपूर्ण रिश्ता है, जो इस पवित्र बंधन व भाई-बहन के पर्व रक्षाबंधन को और भी अधिक मजबूत बनाता है।

रक्षाबंधन पर्व हिंदुओं का एक महत्वपूर्ण पर्व एवं त्योहार है जो कि सम्पूर्ण भारत के अधिकांश हिस्सों में बड़े ही धूम- धाम से मनाया जाता है। भारत के अलावा भी विश्व भर में जहाँ भी सनातन हिंदू धर्म के लोग रहते हैं, इस पर्व को खुशियों के साथ मनाया जाता है। इस त्योहार का आध्यात्मिक महत्व तो है ही, उसीके साथ- साथ रक्षाबंधन पर्व का ऐतिहासिक महत्व भी है।

इस सन्दर्भ में यहाँ कुछ ऐसे किस्से, कहानियों, कथानकों और
किम्बदनंतियों का सूक्ष्म उदाहरण भी प्रस्तुत है, जिसे अपने भी कहीं अवश्य पढ़ा या बड़े बुजुर्गों से सुना होगा। भविष्य पुराण के अनुसार देवराज इंद्र,जो असुरों से अक्सर ही पराजित हो जाया करते थे, जिससे वे बहुत चिंतित रहते थे। इस समस्या के समाधान के लिए उनकी पत्नी इंद्राणी ने रेशम का धागा मंत्रों की शक्ति से पवित्र करके अपने पति के हाथ पर बाँध दिया। इंद्र इसी धागे की मंत्र शक्ति से विजयी हुए।

द्रोपदी ने भी युद्ध के दौरान श्री कृष्ण की घायल उँगली से बहते हुए खून को रोकने के लिए, अपनी साड़ी से एक टुकड़ा फाड़कर श्री कृष्ण की उंगली में बाँध दिया था, जिससे उंगली से बहता हुआ खून रुक गया था। इस उपकार के बदले श्री कृष्ण ने भी द्रोपदी को किसी भी संकट में उसकी सहायता करने का वचन दिया था। महाभारत काल में जब कौरवों द्वारा एक भरी सभा में दुष्ट दुःशासन द्वारा द्रौपदी का चीरहरण किया जाने लगा तो श्री कृष्ण ने ही एक भाई सम, बहन द्रौपदी को किसी संकट में रक्षा करने के अपने दिए गए वचन को निभाने के लिए द्रौपदी की चीर को बढ़ाते हुए उसकी लाज की रक्षा किया।

इसी प्रकार एक बार बहादुरशाह जफ़र द्वारा मेवाड़ पर हमला कर दिया तो मेवाड़ की रानी कर्मवती ने मुगल बादशाह हुमायूँ को राखी भेजकर उससे अपनी रक्षा की याचना की। हुमायूँ नें मुसलमान होते हुए भी रानी कर्मवती द्वारा भेजी गई राखी की लाज रखने को उसकी याचनानुसार रक्षा कर उसकी राखी की लाज रखी।

सिकंदर महान की पत्नी ने भी एकबार अपने पति के हिंदू शत्रु
पुरुवास को राखी बाँध कर अपना मुँह बोला भाई बनाया था। पुरुवास ने अपनी बहन को दिए गए वचन का सम्मान करते हुए सिकंदर को जीवनदान दे दिया था।

रक्षाबंधन के दिन बहन अपने भाई के मस्तक पर रोली, अच्छत, का टीका/ तिलक लगाकर उसके कलाई पर रक्षा का बंधन यह पवित्र सूत्र बाँधती है, भाई की आरती उतारती है। मिठाई खिला कर उसका मुँह मीठा कराती है और अपने भाई की लम्बी उम्र के लिए ईश्वर से दुआ करती है। भाई अपने बहन को उपहार देता है और किसी संकट में उसकी और उसकी लाज की रक्षा करने का वचन देते हुए यही संकल्प लेता है, जिसे राखी त्योहार या रक्षाबंधन का त्योहार कहते हैं।
यह मूलतः सनातन हिन्दू धर्म का एक पवन त्योहार है, इसको जैन, सिख इत्यादि सभी धर्म के लोग भी एक त्योहार के रूप में मनाते है। यह पर्व प्रतिवर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। यह भाई-बहन के अटूट प्रेम का एक त्योहार है,जो कि भाई और बहन को स्नेह के इसी पवित्र बंधन में बाँधता है और उन्हें जीवन में एक दूसरे के लिए खड़े रहने,मदद करने और रक्षा करने के संकल्प एवं कर्तव्य का याद दिलाता है। श्रावण मास में यह त्योहार पड़ने और मनाये जाने के कारण ही इसे श्रावणी या सलूमण भी कहते हैं। सदियों पूर्व से यह त्योहार मनाया जाता आ रहा है।

इसे यूँ ही यदि मनाते रहना है तो इसके पीछे के वास्तविक सत्य को भी समझना और मानना है, क्योंकि इसमें सबसे पहले तो हमें इस त्योहार की मूल भावना का हम भाइयों को आदर एवं सम्मान करना होगा। वह यह है कि यथा शक्ति स्वेच्छा से भाई द्वारा बहन को दिया जाने वाला कोई भेंट स्वरुप उपहार उतना जरुरी नहीं,जितना कि हर घर के भाई की दृष्टि में अपनी बहन के साथ ही साथ समाज की हर माँ, बहन, बेटी के लिए भी उसके ह्रदय में समुचित आदर, सम्मान, रक्षा,सुरक्षा करने की एक प्रबल इच्छा जागृत हो और बहनों की पीड़ा एवं समाज के भेडियों से उनकी सुरक्षा के लिए एक भाई जैसा अपना कर्तव्य निभाना चाहिए। बहनों को अपने भाइयों को हर एक नारी की इज्जत करनें की जरुरी सीख और संस्कार देनी चाहिए,जिससे राखी या रक्षाबंधन का यह त्योहार हमें जीवन में वास्तविक आनंद और पारम्परिक खुशियाँ दे सके,और हम इस पर्व और त्योहार की पवित्रता बनाये रखने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकें। आपातकाल में नजर पड़ने पर जरूरत के अनुसार समाज की भी अपनी बहनों की मदद कर सकें और एक सामाजिक भाई की तरह ही अपना धर्म निभाते हुए बहनों की यथा संभव मदद और सुरक्षा कर सकें।

जरूरत इस सोच को विकसित करने की है कि रक्षाबंधन त्योहार किसी भाई द्वारा किसी बहन को कोई उपहार या पैसे देने भर मात्र से उसका स्नेह, प्यार नहीं टिका है बल्कि यह त्योहार अपनी मूल भावना और उद्देश्य पर ही चलते हुए प्राचीन काल से मनाया जाता चला आ रहा है। अतः जब यह त्योहार इन सब भावनाओं से ओत-प्रोत होकर के बल्कि इससे भी ऊपर की सुन्दर सोच के साथ मनाया जाएगा तो इसकी सुंदरता और भी अधिक निखर जाएगी।

सही मायने में यह त्योहार नारी के प्रति रक्षा की भावना को ही समाज में पुरुषों के ह्रदय में बढ़ाने और स्थापित करने के लिए भी मनाया और बनाया गया है। आज समाज में नारी की मर्यादा की स्थिति बहुत ही गंभीर है और नारी के प्रति सामाजिक सोच बहुत ही घृणित और दयनीय सोच है क्योंकि यह त्योहार अपने मूल अस्तित्व से दूर हटता जा रहा है,जरूरत है इस त्योहार के सही मापदंड को समझें एवं अपने आस-पास के सभी लोगों को समझाएं। अपने बच्चों को राखी पर्व पर लेन- देन से हटकर इस त्योहार के मूल व वास्तविक परंपरा को समझाएं,उसे आत्मसात कराएं तभी आगे जाकर भाई -बहनों का पावन रक्षाबंधन का यह त्योहार अपने सनातन धर्म के मूल उद्देश्य एवं ऐतिहासिक मूल्य को भी एक बार पुनः प्राप्त कर सकेगा। समाज में व्याप्त नारी के प्रति असम्मान, असुरक्षा, हिंसा, अनैतिक आचरण और संकीर्ण मानसिकता की भावना में बदलाव आ सकेगा । साथ ही साथ सामाजिक सोच के बदले हुए परिवेश में नारी एवं बालिका के प्रति युवाओं, पुरुषों और असामाजिक तत्वों के हृदय में भी
आदर का भाव उत्पन्न हो सकेगा और भाई-बहन का ये पावन पर्व रक्षाबंधन या राखी का त्योहार दिल की गहराइयों के साथ
बिना किसी डर, भय, पीड़ा के साथ हर्षोल्लास के साथ जिंदगी भर मनाया जाता रह सकेगा। इस रक्षाबंधन सभी बालक, युवा, पुरुष हृदय से बहन, बेटियों,नारियों को इज्जत और सुरक्षा देने का दृढ़ संकल्प लें और अपनी बहनों को यही संकल्प निभाने का उन्हें वचन दे कर उपहार स्वरुप दें।

आप सभी भाई-बहनों को रक्षाबंधन की हार्दिक बधाई एवं ढेरों मंगल शुभकामनाएं 💐