14 दिवसीय मधुश्रावणी महापर्व का समापन आज
टेमी दागने के साथ होगा इस महापर्व का समापन
कई नवविवाहित कन्याओं ने अपने विचार साझा करते हुए इसे बताया महान पर्व
विशेषकर मैथिल कायस्थ और ब्राह्मण समुदाय की महिलाएँ मनाती है यह त्यौहार
नवविवाहिता के लिए मधुश्रावणी होता है बहुत ख़ास
भारत मूर्त और अमूर्त संस्कृति की निरंतरता वाला देश है।पर्व-त्यौहार यहाँ के जीवन की संजीवनी है । हर महीने को किसी ख़ास पर्व में बदलने का हुनर देश की सामाजिक संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है । अभी सावन का पवित्र महीना चल रहा है । देश के हर राज्य में इस पर्व को मनाने के अलग-अलग तरीके भी है । आज हम मिथिलांचल में मनाए जाने वाले मधुश्रावणी व्रत की कहानी को समझते हैं । देश या विदेश के जिस भी हिस्से में मिथिला के लोग रहते हैं वे इसे बहुत ही धूमधाम मनाते हैं ।
क्या होता है ‘मधुश्रावणी’ पर्व?
बिहार के मिथिलांचल में मधुश्रावणी पर्व को सुहाग का पर्व भी कहा जाता है । यह पर्व वैसे तो सभी सुहागिनों के लिए होता है पर नवविवाहित कन्याओं के लिए यह बहुत ख़ास और महत्वपूर्ण होता है । सुहागन स्त्रियां इस पर्व के प्रति गहरी आस्था रखती है।सावन महीने के कृष्ण पंचमी से ये पर्व प्रारंभ होकर सावन महीने के शुक्ल पक्ष की तृतीया को समाप्त हो जाता है । 14-15 दिनों के इस त्यौहार में नवविवाहित कन्या 14 दिनों तक उपवास में रहती है या बिना नमक का खाना खाती है । इस पूरे पर्व में जो कन्या इस पूजा को करती है, उनके लिए ये बहुत उत्साह का पर्व होता है । पति की लम्बी आयु और समृद्धि के लिए ये व्रत करती है । यह पर्व नवविवाहिता के मायके में ही होने की परंपरा है । नवविवाहित कन्या के लिए नये कपड़े और पूरे पर्व में जो फलहार वो करती है, उनके ससुराल का ही अनाज होता है।
किसकी आराधना की जाती है?
इस पर्व में मूल रूप से शिव-गौरी की पूजा की जाती है । विषहरी (नाग देवता) की भी विशेष रूप में पूजा की जाती है । मिट्टी की मूर्ति बनाई जाती है । रोज़ शाम में महिलाएं फूल तोड़ कर लाती है । हर सुबह उन्हीं फूलों से शिव-गौरी की पूजा होती है । हर विधा के लिए महिलाएं अलग – अलग गीत गाती हैं । 14 दिनों तक शिव-गौरी की कहानी का सुनाई जाती है । गाँव या आसपास की सभी महिलाएं हर दिन की पूजा के लिए अलग – अलग प्रकार के प्रसाद बनाती है । सामूहिक गीत-संगीत गाये जाते हैं । बहुत ही श्रद्धा के साथ इस पर्व को मनाया जाता है।
शिल्पा बाला (जमशेदपुर, झारखंड), खुशबू (सिकरहटा, सुपौल, बिहार), उपासना (सहरसा, बिहार), खुशबू (भीमनगर, बिहार), अंकिता कर्ण (तेघरा, मधुबनी, बिहार) आदि कई नवविवाहित कन्याओं ने अपने विचार साझा करते हुए बताया कि आदिकाल से मनाया जाने वाला यह पर्व एक महान पर्व है । इष्टदेव के साथ साथ अपने पति के प्रति आस्था रखने कारण इतने दिनों तक अरबा (बिना नमक के खाना) या फलाहार खाकर रहने से भी न तो हमारा शरीर कमजोर होता है और न ही हमारा मन ।
मधुश्रावणी पूजन के महत्व को बताते हुए मैथिल पंडित व विद्वान कहते हैं कि इस पर्व के करने से सुहागिन महिलाओं के पति की उम्र बढ़ती है और घर में सुख शांति आती है । पूजन के दौरान मैना पंचमी, मंगला गौरी, पृथ्वी जन्म, महादेव कथा, गौरी तपस्या, शिव विवाह, गंगा कथा, बिहुला कथा तथा बाल वसंत कथा सहित 14 खंडों में कथा का श्रवण किया जाता है । इस दौरान गांव समाज की बुजुर्ग महिला कथा वाचिकाओं द्वारा नवविवाहितों को समूह में बैठाकर कथा सुनाई जाती है । पूजन के सातवें, आठवें तथा नौवें दिन प्रसाद के रूप में खीर का भोग लगाया जाता है । प्रतिदिन संध्या में महिलाएं आरती, सुहाग गीत तथा कोहबर गाकर भोले शंकर को प्रसन्न करने का प्रयास करती हैं ।
क्या है मान्यता ?
ऐसी मान्यता है कि माता पार्वती ने सबसे पहले मधुश्रावणी व्रत रखा था और जन्म जन्मांतर तक भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त करती रहीं । इस पर्व के दौरान माता-पार्वती और भगवान शिव से संबंधित मधुश्रावणी की कथा सुनने की भी मान्यता है । साथ ही साथ बासी फूल, ससुराल से आई पूजन सामग्री, दूध, लावा और अन्य सामग्री के साथ नाग देवता व विषहर की भी पूजा की जाती है ।
आज भी बरकरार है परंपरा
बता दें कि सदियों से चली आ रही यह परंपरा आज भी बरकरार है । इस पर्व में मिथिला संस्कृति की झलक ही नहीं बल्कि भारतीय संस्कृति की भी झलक देखने को मिलती है । इस पूजा में लगातार 13 दिनों तक व्रत करने वाली महिलाएं प्रतिदिन एक बार अरवा भोजन करती हैं । इसके साथ ही नाग-नागिन, हाथी, गौरी, शिव आदि की प्रतिमा बनाकर प्रतिदिन कई प्रकार के फूलों, मिठाईयों एवं फलों से पूजन करती हैं । सुबह – शाम नाग देवता को दूध लावा का भोग लगाया जाता है ।
टेमी दागने की है परंपरा
पूजा के अंतिम दिन पूजन करने वाली महिला को कठिन परीक्षा से गुजरना पड़ता है । टेमी दागने की परंपरा में नवविवाहिताओं को रूई की टेमी से हाथ एवं पांव को पान के पत्ते रखकर टेमी जलाकर दागा जाता है । पूजा के अंतिम दिन 14 छोटे बर्तनों में दही और फल मिष्ठान सजाकर पूजा की जाती है । साथ ही 14 सुहागिन महिलाओं के बीच प्रसाद का वितरण कर ससुराल पक्ष से आए हुए बुजुर्ग से आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है । उसके बाद पूजा का समापन होता है ।