डॉ राजेन्द्र बाबू जयंती विशेष/ देशवासियों के दिलों में बसते थे श्रद्धेय “राजेन्द्र बाबू”
राष्ट्रीय स्तर के कलमकार अनिल कुमार श्रीवास्तव ने उन्हें किया नमन
सिर पर चोनदार सफेद टोपी ललाट पर गजब का तेज, कालिमा को मात देती सफेद उजली व रौबदार मूछें, खद्दर कुर्ते और सफेद धोती में हांथ में पतली छड़ी लिए साधारण सी दिखने वाली भारत की असाधारण विभूति का तआरुफ़ अपने ही देश में कराना तो मैं समझता हूं सूरज को दिया दिखाने जैसा होगा। कल उनकी जन्मतिथि है।
जी हाँ सही समझे यह और कोई नही भारतीय रत्न डॉ राजेन्द्र प्रसाद जी हैं जिनकी श्रद्धा सम्मान में यकीनन समूचे राष्ट्र का सिर झुक ही जाता होगा चाहे कोई दल हो, वर्ग हो अथवा क्षेत्र हो। मगर हमारा दुर्भाग्य है कि आधिकारिक तौर पर इनकी सामूहिक स्मृति बिसरा सी दी गई। याद तो बेशक सब इन्हें पूरी श्रद्धा भाव के साथ करते हैं लेकिन देश की आजादी, अखंडता पर जीवन समर्पित कर देने वाले इस विराट व्यक्तित्व की जन्मतिथि को संविधान दिवस, राष्ट्रपति दिवस, अधिवक्ता दिवस, चित्रांश दिवस, ज्ञान दिवस आदि आदि नामो से सब अलग अलग अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं और हां सरकार की तरफ से कोई आधिकारिक अवकाश या एक नियत स्मृति निर्धारण भी नही है। जाने क्यूं इस बात को लेकर मन कचोटता सा है।
खैर स्मृति सम्मान सबका अपना अंदाज है और इस बात में कोई शक नही की उनमें इतनी खूबियां विद्यमान थीं। वह तो विलक्षण व बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। मेरा तो सभी देशवासियों से इतना निवेदन है कि यह विभूति विराट व्यक्तित्व हैं इन्हें किसी छोटे खांचे में फिट कर इनकी स्मृति सीमित रखना इनकी स्मृति के लिए इंसाफ नही होगा। बेहद विराट व्यक्तित्व विभूति की स्मृति सम्मान के लिए भारत सरकार से मांग करना चाहूंगा कि इनकी जन्मतिथि को यादगार बनाने के लिए कोई खास पहल करे।
3 दिसम्बर को बिहार प्रान्त के जिला सिवान स्थित जीरादेई में जन्मी इस असाधारण प्रतिभा ने बचपन से ही अपनी बुद्धिमत्ता के प्रमाण देने शुरू कर दिए थे दोनों हाथों से लिखने की अद्भुत कला विद्यमान थी। माँ सरस्वती के वरदपुत्र डॉ राजेन्द्र प्रसाद को स्कालरशिप भी मिलती थी। लोग कुछ भी कहें लेकिन मुझे लगता है अपनी बुद्धिमत्ता के बल पर वह गांधी जी के बेहद करीबी माने जाते थे। जब गांधी जी गोल मेज सम्मेलन में भाग लेने के लिए तैयार थे तो उनके महत्वपूर्ण दस्तावेज गुम हो गए जो कहीं मिल नही रहे थे तो डॉ राजेंद्र प्रसाद ने मुहजुबानी बोलकर टाइप करवाया जो उनके दस्तावेज का हूबहू था। मतलब स्मरण में उनका कोई सानी नही था।
वह चित्रांश तो थे ही साथ मे साहित्य, विधि, राजनीति में, शिक्षा आदि क्षेत्रों में भी अद्वितीय थे। और यह तो सभी जानते ही हैं वह संविधान निर्मात्री सभा के भी अध्यक्ष थे।
आजाद भारत के पहले कहिए या द्वितीय खैर मैं तो उन्हें अद्धितीय राष्ट्रपति कहूंगा। क्योंकि वही अब तक के एकमात्र राष्ट्रपति हैं जिन्होंने अपनी जिम्मेदारी आधी पगार पर निभाई और कार्यकाल के अंतिम दिनों में तो सुनने में आया है कि वह चौथाई सैलरी से काम चलाते थे। उन्हें प्रथम व द्वितीय राष्ट्रपति इसलिए कहता हूं क्योंकि देश के प्रथम व्यक्ति का दायित्व सफलता पूर्वक लगभग 12 वर्षो तक निभाया है। 1950 में संविधान लागू होने के बाद 1962 में इस्तीफा दिया था और इसी साल उन्हें भारत रत्न से भी विभूषित किया गया, ऐसा रिकॉर्ड भी कहते हैं।
हर भारतीय के दिल मे बसने वाले परम श्रधेय “राजेन बाबू” (डॉ राजेंद्र प्रसाद जी को उनके चाहने वाले इसी नाम से पुकारते थे) का अंतिम समय बेहद कष्टमयी रहा उनका अंतिम दिन 1963 की 28 फरवरी पटना के सदाकांत आश्रम में बीता जहां इस लोकप्रिय विभूति ने अंतिम सांस ली।
कहते हैं समर्पण और सादगी की प्रतिमूर्ति सीधे साधे व सकारात्मकता से परिपूर्ण डॉ राजेन्द्र प्रसाद तत्कालीन सियासी दांवपेंचों व नकारात्मकता का भी शिकार रहे और इतना विराट व्यक्तित्व के कद को लगातार कम करके दिखाया जाता रहा और अंत समय मे उचित देखभाल भी नही की गई। उन्होंने अपना सारा जीवन ही देश को समर्पित कर दिया था किसी चीज की लालसा थी नही और उन्होंने अपने परिवार या अपने लिए व्यक्तिगत रूप से कोई सरकारी लाभ भी नही लिया था।
खैर मुझे जो लगा लिखा और अब तक की सरकारों ने उनकी स्मृति के साथ जो किया सो किया अगर सरकार मेरी मांग पर ध्यान देती है ईमानदारी से तो देश की इस विभूति की स्मृति के साथ अच्छी बात होगी। वरना मैं तो चला हूं जानिब ए मंजर, लोगो जुड़ते जाओ सन्देश का दायरा बढ़ाते जाओ ताकि सरकार तक पहुंच सके।
अब प्रथम राष्ट्रपति कहूं या एडवोकेट कहूं, कवि/लेखक कहूं या सेवी कहूं, स्वतंत्रता सेनानी कहूं या संविधान निर्माता … समझ मे नही आ रहा इस भारतीय रत्न को क्या कह कर श्रद्धा नमन के सुमन दूं। मैं कल के पावन अवसर पर भारत भूमि में जन्मी इस असाधारण प्रतिभा को दिल की ✍️ कलम से नमन करता हूँ 🙏।