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दरभंगा/ युवाओं को समझना जरूरी कि कोरोना रूपी चुनौती को दे चुनौती : प्रो० अमृत कुमार झा

✍️ प्रो० अमृत कुमार झा, दरभंगा

“दिल नाउम्मीद तो नहीं, नाकाम ही तो है,
लंबी है गम की शाम, मगर शाम ही तो है।”

दरभंगा : फैज अहमद फैज के इस पंक्ति का चरितार्थ अभी इस कोरोना काल और युवाओं के मनोदशा पर बिल्कुल सटीक बैठता है। हम लोग एक ऐसे दौर से गुजर रहे हैं जहां मौत एक आम सी घटना हो चली है, शायद ही कोई दिन ऐसा बीतता है जहां कोई अपने या परिचित के चले जाने का दुखद सूचना ना मिलती हो। आए दिन विभिन्न व्हाट्सएप ग्रुप पर श्रद्धांजलियों का तांता लगा रहता है। ऐसी परिस्थितियां अपने आप में विषम और भयावह कर देने वाली है। इसमें कोई दो राय नहीं होनी चाहिए कि हम खुद इस परिस्थिति के जिम्मेदार हैं। सरकार की विफलता यह दोषारोपण करने से पहले यह हम सबको आकलन करना होगा की स्थिति पैदा ही क्यों हुई? पिछले दिसंबर के माह से ही दरभंगा में कुछेक प्रतिशत लोग मास्क और समाजिक दूरी बनाते हुए दिखते थे। हमने अपने खुद के कॉलेज के छात्र छात्राओं को न जाने कितनी बार क्लास में तथा सोशल मीडिया के जरिए उन्हें कोविड के रोकथाम के लिए गाइडलाइंस पालन करने के लिए कहा। लेकिन विरले ही बच्चे स्वयं से गाइडलाइन का पालन करते हुए दिखते थे।

वैक्सीनेशन हो जाने के बाद 45+ लोग निडर हो गए और बाद में पता चला की यही लोग कोरोना वायरस के सबसे ज्यादा कैरियर के रूप में उभरे। परिणाम स्वरूप इस दूसरे लहर में सबसे ज्यादा संक्रमण युवाओं में होने लगा। जब हम पेल्ट्जैमन इफेक्ट को इस काल में रखते हैं, तो मनुष्यों का यह रवैया समझ में आने लगता है। पेल्ट्जैमन ने यह देखा था कि जब कारों में सुरक्षित यंत्र आधुनिक लगने लगे जैसे सीट बेल्ट और एयर बैग्स, तब दुर्घटनाओं से मृत्यु तो कम होने लगी, पर दुर्घटनाएं बढ़ने लगी‌। मतलब यह कि जब मनुष्य के सुरक्षा उपायों में बढ़ोतरी होती है, तो वह जोखिम लेना शुरू कर देता है और ठीक यही स्थिति हम इस साल के शुरुआत से भारत में देख सकते हैं।

डब्ल्यूएचओ ने स्वास्थ्य के तीन आयामों को रखा- शारीरिक, मानसिक, और सामाजिक। इस कोरोना काल में घटित हो रहे घटनाएं खासकर भविष्य में मानसिक और सामाजिक स्वास्थ्य पर ज्यादा असर डालने वाली है। सामाजिक दूरी ने मानों तो सामाजिकता पर ही
सवाल खड़े कर दिए हो। मानसिक स्वास्थ्य को लेकर यूएनओ के चीफ तक ने इस महामारी से जन्में मानसिक बीमारी के सुनामी को लेकर चिंता व्यक्त की है। इस सब के मद्देनजर आइए देखते हैं कि हमारे युवा खुद को कैसै स्वस्थ रखकर कैसे अपने समाज और देश को दुरुस्त रख सकते हैं।

सबसे जरूरी बात तो यह कि हमारे युवाओं को आज के परिवेश को स्वीकारना होगा। चुकीं हमारा बिहार इस युवा देश का सबसे युवा प्रदेश है, तो उनके अंदर जो कोई दुश्चिंता, तनाव, भय, उथल-पुथल मची है, उसको लिखें और उस पर मंथन करें कि आप कैसे अपने अंदर चल रहे इस उथल-पुथल को नियंत्रित करेंगे। ऐसा करने से आप अपने नकारात्मक पहलुओं से अवगत होंगे और जो भी कदम आप उठा सके, उसको करने के बाद आप खुद में हौसला, विश्वास, मजबूती पाएंगे और आपके जीवन का लोकस आफ कंट्रोल आपके हाथ में होगा।

दूसरी बात यह जो भी आपके शौक हैं, उसको इस काल में पूर्ण तरीके से इंजॉय करने की कोशिश करें। आप गाना सुने, अपना मनपसंद किताब मंगवाए और पढ़ें, चित्रकारी करें, फोटोग्राफी करें, नया कोई खाना बनाना सीखें। यह सब करने से आप स्फूर्ति महसूस करेंगे तथा आप सकारात्मक रहेंगे। यहां पर मैं एक बात कहना चाहूंगा की जीवन में सीखने की आदत डालें। ऐसा करने से आपको हर एक दिन उम्मीदों भरा लगेगा और जीवन में आपको एक मकसद मिलेगा।

तीसरी बात कि जितना हो सके जरूरतमंदों की मदद करें। जरूरी नहीं कि मदद सिर्फ पैसों से ही हो। आप अपने दोस्तों या संगठन के साथ मिलकर अनाज, अन्न, ऑक्सीजन सिलेंडर, एंबुलेंस या ऑटो रिक्शा का इंतजाम या जो कुछ भी आप कर सके, जरूर करें। ऐसा करने से आपको अपनी अहमियत, जीवन में मकसद, अपने आप पर गर्व महसूस होगा।

हमारे मनोविज्ञान में साइक्लोजिकल कैपिटल करके एक अवधारणा है। इसके चार आयाम है- आत्मसम्मान, उम्मीद, आशावाद, और जुझारूपन। यह चारों‌ आयाम तभी काम में आएंगे जब आपकी मनोदशा और सोच सकारात्मक पहलुओं की ओर झुकी रहेगी। तो ऐसे कर्म करते रहें जिससे आपको खुशी और संतोष की प्राप्ति होती है। खुद को और अपने सोच को स्थिर करने की कोशिश करें। गीता में भगवान श्री कृष्ण ने स्थितप्रज्ञ होने की आवाहन की है। यह एक ऐसी अवस्था है जिसमें मनुष्य ना तो सुख और ना ही दुख का अनुभव करता है। इन दोनों छोरों पर वह खुद को, अपने दिमाग को, और अपनी सोच को स्थिर रखता है। सुख और दुख एक स्थितप्रज्ञ व्यक्ति को बिल्कुल भी प्रभावित नहीं कर सकता।

समय आ गया है कि हम सब एकजुट होकर, अपनी मनोदशा बदल कर, जीवन शैली में बदलाव कर, जीवन के इस गाड़ी को सार्थक रूप से आगे बढ़ाएं और अपने सोच को कृष्ण रूपी सारथी जैसा मजबूत, प्रभावशील, और विजयी बनाए।

और क्या क्या कर सकतें हैं:

• सुबह उठ के 5 मिनट प्रभु का स्मरण करें और उन्हें धन्यवाद दे कि आप उनकी बनाई हुई सृष्टि के भाग हैं और इस जहां को और अच्छा बनाने की जुस्तजू में है।

• सोते समय एक डायरी बनाएं जिसमें प्रतिदिन आपके द्वारा किया गया 3 अच्छे कामों का जिक्र होगा, जिससे आपको खुशी मिली हो। ऐसा एक सप्ताह करने से आपके पास 21 तरीक़ो से खुश होने के कारण होगा। यह एक्सरसाइज करने से आप अपने दिमाग को सकारात्मक ट्रेनिंग दे सकते हैं, जो कि आपको नकारात्मक स्थितियों में भी सकारात्मक रखेगा।

• घर की बड़े बुजुर्गों के साथ समय बिताएं। उनसे उनके जीवन के महत्वपूर्ण पहलुओं पर बात करें और यह सीखें की चुनौतियों को कैसे चुनौती दी जाती है। उनके साथ बैठने से इतना तो तय है कि आपको जिंदगी में कौन सी गली लेनी है और कौन सी छोड़नी है, इसका आपको इल्म हो ही जाएगा। और भला अनुभव के सामने किसी की क्या बिसात!

• जो आपके नियंत्रण में है, उस पर फोकस करें और उसको जितना हो सके ठीक करें। जो आपके नियंत्रण में नहीं है, उस पर समय देने से आप अपनी मानसिक स्वास्थ्य बिगाड़ते हैं। अवसाद और चिंता भरे लोगों में अमूमन यह पाया गया है कि ऐसे लोग अपने बूते से बाहर के बातों पर ज्यादा रोना करते हैं। आप न्यूज़ कम देखें, गाइडलाइंस का पालन करें, कोविड एप्रोप्रियेट व्यवहार अपनाएं, और समाज में जागरूकता फैलाएं।

• दिन में जभी भी आपका मन हो तो योगा (अनुलोम विलोम, कपाल भारती)और मेडिटेशन करें। कोशिश करें डीप ब्रीदिंग एक्सरसाइ जरूर करें।

• एक शौकों की फहेरिस्त बनाए जो आप आज से तीन चार साल बाद करना चाहते हैं। अपने जीवन को दिशा दें।