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डायलिसिस डायरी/ संस्मरण : 12वाँ संस्करण

✍️ अनिल कुमार श्रीवास्तव

 

“गुर्दा रोगियों के लिए महत्वपूर्ण : अनुभव आधारित जानकारियों का श्रंखलाबद्ध संस्मरण” – 12वाँ संस्करण

जैसा कि आप लोगों को संस्मरण के संस्करणों की एकादशी में बताया था तमाम सरकारी चुनौतियों के बाद आखिरकार डायलिसिस की परमीशन ईएसआईसी के खाते से मिल ही गयी थी। और मैं छः महीने की डायलिसिस अप्रूवल लेकर यथार्थ हॉस्पिटल पहुंचा, लेकिन इन सरकारी औपचारिकताओं के चक्कर मे बीच की डायलिसिस मिस हो जाने की वजह से तमाम शारीरिक परेशानियां थीं। आपको बताते चलें कि जांचों के आधार पर गुर्दा विशेषज्ञ तय करते हैं कि नियमित डायलिसिस कितने अंतराल पर और किस तकनीकी मानक पर यह प्रक्रिया होनी है। अगर यह नियमितता टूट जाय तो तमाम शारीरिक दिक्कतें शुरू हो जाती हैं जो धीरे धीरे बेहद गम्भीर हो जाती है। मुझे चिकित्सकों ने सप्ताह में तीन बार डायलिसिस के लिए निर्देशित कर रखा था और मेरी डायलिसिस का अंतराल लग्भग 6 दिनों का हो चुका था सो स्वाभाविक रूप से तबियत तो गम्भीर होनी ही थी। और मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ। मेरे सर में भारीपन, उलटी, भूंख भी नही लग रही थी, कमजोरी तो इतनी थी कि खड़े भी नही हुआ जा रहा था। हांथ , पैर, पेट व चेहरे पर सूजन थी, सांस फूल रही थी।
इत्तेफाक से उस निजी अस्पताल में डायलिसिस इंचार्ज, जो बेहद अनुभवी थे और उनका जिक्र पिछले पन्नो पर भी किया है, मेरे पूर्व परिचित ही थे और उन्हें देखकर मेरे सूजे चेहरे पर मुस्कान आ गयी। उन्होंने मुझे और मेरी हालत देखते हुए फौरी तौर पर डायलिसिस शैय्या पर लिटा दिया, वो मुझसे ही नही मेरे शरीर से भी पूर्व परिचित थे यानी मेरी डायलिसिस कर चुके थे उनको अंदाजा था मेरे शरीर की प्रतिक्रियाओं के विषय मे। और उन्होंने उस निजी अस्पताल की औपचारिकताएं स्वयं पूरी करवा ली थी। अब डायलिसिस स्टार्ट हुई और लगभग एक घण्टा फर्राटेदार स्पीड से डायलिसिस चलने के बाद चित्त प्रसन्न होने लगा। इंचार्ज साहब स्वभाव से मजाकिया भी थे या यूं कह लीजिए तमाम तनावों से आये मरीजो को तनावमुक्त करने के लिए उन्होंने मजाकिया का चोला ओढ़ रखा हो, खैर कुछ भी हो वो बीच बीच दवाइयों के साथ हास्य डोज भी देते रहे और कब चार घण्टे बीत गए पता ही नही चला। उस दिन मेरे शरीर मे फ्ल्यूड लगभग 7 किलो बढ़ा हुआ था लेकिन उन्होंने 4 किलो फ्ल्यूड ही निकाला था। फ्ल्यूड पर फिर कभी जिक्र करेंगे फिलहाल उस दिन घर वापस आया तो अपने आप को काफी हल्का महसूस कर रहा था लेकिन प्यास थमने का नाम ही नही ले रही थी। और काफी कम पानी के प्रयास में भी मतलब से ज्यादा पानी शरीर मे फिर बढ़ा ही दिया था। मुझे लग रहा था कि स्वास्थ्य विभाग कहीं मेरे शरीर को बाढ़ग्रस्त न घोषित कर दे। मैं उनके निर्देशो की अव्हेलना करते हुए पुनः शरीर मे पानी बढ़ाकर दूसरे दिन हाजिर हो गया। और फिर उन्होंने अपनी गाइडलाइन और क्षमता के अनुरूप पानी ( फ्ल्यूड) निकाला … यह सिलसिला लगातार चलता रहा वो समझाते रहे मैं उनकी हिदायतों को ताख पर रख बिंदास अपने मन की करता रहा, वो शरीर से फ्ल्यूड निकालते रहे मैं शरीर मे फ्ल्यूड बढ़ाता रहा … फलस्वरूप …. क्रमशः ….. (अगले रविवार को)