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डायलिसिस डायरी/ संस्मरण : 10वाँ संस्करण

(गुर्दा रोगियों के लिए महत्वपूर्ण : अनुभव आधारित जानकारियों का श्रंखलाबद्ध संस्मरण : 10वाँ संस्करण )

✍️ अनिल कुमार श्रीवास्तव

…………एक एक कर सरकारी निर्णयों की गाज इस गली की छोटी सी मगर ग्राहकप्रिय पर पड़ने लगी। नोटबन्दी, जीएसटी हो सकता है राष्ट्रहित में निर्णय सही रहे हो लेकिन इस दुकान के लिए अभिशाप ही रहें। जीएसटी के सारे नियम तो नही पता लेकिन इस छोटी दुकान पर जब बड़ी दुकानों यानी होलसेल से आता तो वह पूरी तरह से जीएसटी लगाते मगर ग्राहक उसे इससे कोई मतलब नही रहता अब कम्पटीशन युग मे प्रॉफिट मिलना ही लग्भग दस फीसदी था कोई चीज जो 90 की मिलती थी वह 95 या 97 की मिलने लगी और ग्राहक जो 100 या 110 की खरीदता था वह उससे बढ़ने को राजी नही था उसका कहना था उसे जीएसटी से क्या मतलब.. अब उसमें समान लाने के किराए से लेकर दुकान के किराए के तमाम खर्चे भी निकालने थे इसलिए थोड़ा मुश्किल पड़ रही थी लेकिन नोटबन्दी ने तो लग्भग कुछ महीनों में हिला ही डाला था लेकिन माननीय प्रधानमंत्री जी ठहरे राष्ट्र के पुजारी उन्हें तो देश की उन्नति से मतलब अब देश के लिए कुछ लोगो को तो शहीद होना ही पड़ता है यह सोचकर मैं भी राष्ट्र के नाम और संघर्ष करने का प्रयास करने लगा। हो सकता है इस तरह के और भी छोटे व्यवसायी हो जो राष्ट्र के नाम संघर्ष कर रहे हों।उन सबका सपना हो कि राष्ट्र विकाशशील से विकसित हो जाय संत जैसे प्रधानमंत्री की अगुवाई में तो आने वाली पीढ़ियों का संघर्ष कम हो जाएगा। नोटबन्दी से चुनौती इसलिए भारी पड़ रही थी कि एक दम से नोट बंद हो जाने और एटीएम पर लंबी कतारों से ग्राहकी में भारी कमी आयी जब डिजिटल लेन देन शुरू भी हुआ तो अधिकांश गली दुकानदार जो नकदी पर जी रहे थे वह इतने आधुनिक नही हो पाए थे कि डिजिटल लेन देन करें और गली के ग्राहक भी इतने स्मार्ट नही थे कि डिजिटल लेन देन करें। यह मॉल्स या बड़ी दुकानों बड़े पढ़े लिखे धनाढ्य ग्राहकों की बाते हुआ करती थीं। हालांकि कुछ महीनों बाद देशवासी इस इसमे ढलने लगे थे लेकिन जो कुछ छोटे दुकानदार प्रभावित हो गए थे उसमें से कुछ लोग उबर नही पा रहे थे उसमें से एक मैं भी था। अब ऐसी स्थिति में एक एनजीओ से मिलकर उसके सहयोग से एक महिला सिलाई प्रशिक्षण केंद्र भी स्थापित किया और इसका नाम दिया अनुभव कौशल केंद्र यह आधुनिक जुकी मशीनों से लैस था, जो औद्योगिक सिलाई पर आधारित था। यह एक तरह से आर्थिक रूप से कमजोर महिलाओं का सहारा भी था। इसमे महिलाएं प्रशिक्षित होकर जीविकोपार्जन के लिए दक्ष होती थी और कम्पनी में ड्यूटी करती थी। लेकिन यह भी ज्यादा दिन नही चला जाने किसकी नजर लगी कि गौतमबुद्ध नगर औधोगिक क्षेत्र में टेक्सटाइल स्पोर्ट कम होने लगे और महिलाओं ने नौकरी की अनुपलब्धता की वजह से सीखना बंद कर दिया। कहावत है परेशानी एक तरफ से नही जब आती है तो चारों तरफ से आती है। इधर दुकान की स्थिति यानी आर्थिक स्थिति प्रभावित होते ही फिर कुछ बेहद करीबी होने का दम्भ भरने वाले वास्तविक दूर होने लगे हालांकि आभासी दुनिया मे सार्वजनिक नही किया था वहां मित्रमाला बरकरार थी स्नेह मिल रहा था। उधर (………क्रमशः ….. अगले रविवार को)