कविता/ ताश के 52 पत्तों में कैसे पूरा वर्ष भरा
ताश खेलते सबहैं पर ये जाने न कोई, खेला जाता सभी जगह जाने न कोई। सभी समझते हैं टाइमपास मनोरंजन, 4यार मिल ताश खेलें करें मनोरंजन। वैज्ञानिक आधार है यह.
ताश खेलते सबहैं पर ये जाने न कोई, खेला जाता सभी जगह जाने न कोई। सभी समझते हैं टाइमपास मनोरंजन, 4यार मिल ताश खेलें करें मनोरंजन। वैज्ञानिक आधार है यह.
कितना सुंदर काव्य है अच्छे हैं रचनाकार सुदूर ग्रामीण का है वरिष्ठ साहित्यकार नाम है कवि सुरेश कंठ देते कविता का आकार रखते सब अर्थ धर्म करते हैं परोपकार नहीं.
✍️ सुधांशु पांडे ‘निराला’ प्रयागराज, उत्तर प्रदेश प्यारी है न्यारी है खुशियों की उम्मीदों की पिटारी है मेरे बाबू जी की तस्वीर। मकान की आधार शिला बचपन.
कुछ नहीं है जगत में तेरा सब कुछ यहीं रह जाएगा क्यों इठलाता है रे पगले सत्य नाम ही रह जाएगा चार दिन का जिंदगी है पगले करते – धरते.
✍️ सुधांशु पांड़े “निराला” प्रयागराज, उत्तर प्रदेश जो एक प्रश्न है बहुत कठिन है, जान कर क्या करोगें? सिर्फ हैरानी होगी। एक उजाला अंतर्मन में जगाए रखना.
उठो अब आंखें खोलो दुनिया बहुत विशाल है करना है बहुत कुछ तुझे यह भारत देश तो बेमिसाल है कितनी गंदगी फैली है इसमें सब का विचार गोल मटोल है.
✍️ प्रदीप सक्सेना प्रथम महीना चैत से गिन राम जनम का जिसमें दिन।। द्वितीय माह आया वैशाख। वैसाखी पंचनद की साख।। ज्येष्ठ मास को जान तीसरा। अब तो जाड़ा.
सभी रहें हमेशा मस्त-मस्त कभी ना हो अस्त – अस्त हरदम प्यार बांटते रहें सुबह में योग करते रहें रोग को प्रास्त करते रहें अपनी विचार बांटते रहें कितना सुंदर.
नीला है आकाश चलता-फिरता राही बीच दोपहर में बृक्ष तले वटोही कराके की गर्मी धूप है बेतहाशा धीमी सिसकती हवा आराम की नहीं आशा करें आखिर क्या करें पनसाला नजदीक.
हे युग के सभी कुशल तारणहार आनंद रहे सुबह- शाम रहे हरदम सदाबहार यह क्रम सदा चलते रहे वुलंद रहें पालनहार स्वस्थ रहे सदा सभी युग के सभी कर्णधार ये.
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