ईमानदारी वह नैतिक दिशा-सूचक है जो चिकित्सा विज्ञान का मार्गदर्शन करती है — प्रो. असीम कुमार घोष, माननीय राज्यपाल हरियाणा
भारत को कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) का उपभोक्ता नहीं, बल्कि सृजक बनना चाहिए — मानवता की सेवा करने वाले नैतिक और रोगी-केंद्रित समाधान विकसित करने चाहिए — डॉ. विनोद कुमार पॉल, सदस्य, नीति आयोग
पीजीआईएमईआर में निवेश किया गया हर रुपया रोगी सेवा में पचास गुना मूल्य लौटाता है । यह हमारी करुणा, दक्षता और समर्पण का प्रमाण है— प्रो. विवेक लाल, निदेशक, पीजीआईएमईआर
चंडीगढ़ : माननीय राज्यपाल हरियाणा प्रो. असीम कुमार घोष ने शनिवार को पोस्टग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (पीजीआईएमईआर), चंडीगढ़ में आयोजित राष्ट्रीय चिकित्सा विज्ञान अकादमी (भारत) के 65वें दीक्षांत समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित किया। उन्होंने कहा, “विज्ञान की प्रगति को नैतिकता का आधार चाहिए। ऐसे युग में जब तकनीक नैतिकता से आगे निकल सकती है और व्यावसायिक दबाव सेवा और लाभ की रेखा को धुंधला कर सकते हैं, आपकी ईमानदारी ही आपका मार्गदर्शन करेगी।”
यह आयोजन भारत की चिकित्सा शिक्षा और शोध यात्रा का एक गौरवपूर्ण अवसर रहा, जिसमें लगभग 300 प्रतिष्ठित चिकित्सक, शोधकर्ता और शिक्षाविद एकत्र हुए। इस अवसर पर डॉ. विनोद कुमार पॉल, सदस्य, नीति आयोग, सम्मानित अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ. दिगंबर बेहरा, अध्यक्ष, एनएएमएस (भारत) ने की, जबकि प्रो. विवेक लाल, निदेशक, पीजीआईएमईआर, डॉ. राधा कांत राठो, डीन (एकेडमिक्स), वरिष्ठ संकाय सदस्य एवं देशभर से आए एनएएमएस फेलो और सदस्य उपस्थित थे।
नए फेलो और सदस्यों को बधाई देते हुए प्रो. घोष ने कहा कि करुणा और अंतरात्मा चिकित्सा व्यवसाय की नींव हैं। उन्होंने कहा, “हर पर्चा जो आप लिखते हैं, हर निदान जो आप करते हैं और हर प्रयोग जो आप करते हैं, वह आपके नैतिक दिशा-सूचक से संचालित होना चाहिए।” उन्होंने एनएएमएस को “भारत के चिकित्सा समुदाय का नैतिक और शैक्षणिक विवेक” बताते हुए कहा कि चिकित्सक का कर्तव्य केवल विज्ञान तक सीमित नहीं, बल्कि सेवा, विनम्रता और सहानुभूति तक विस्तृत है।
उन्होंने कहा, “चिकित्सा केवल शरीर को ठीक करने का विज्ञान नहीं, बल्कि आत्मा से संवाद है। यह सहानुभूति से निर्देशित बुद्धि और नैतिकता में निहित प्रगति की मांग करती है।” उन्होंने डॉक्टरों से आग्रह किया कि वे मरीजों को ‘केस’ नहीं बल्कि गरिमा और आशा से भरे जीवन के रूप में देखें। “हर परामर्श एक विश्वास का कार्य है। हर मरीज हमारा शिक्षक है। चिकित्सा अपने सर्वोच्च रूप में एक नैतिक कला है।” उन्होंने कहा, “सफेद कोट विशेषाधिकार का प्रतीक नहीं बल्कि सेवा का प्रतीक है। इसे विनम्रता से धारण करें और हर धड़कन जो आप ठीक करते हैं, वह आपको मानवता के प्रति आपके दायित्व की याद दिलाए।”
अतिथि वक्ता के रूप में संबोधित करते हुए डॉ. विनोद कुमार पॉल ने कहा कि एनएएमएस ने छह दशकों से चिकित्सा उत्कृष्टता और सामाजिक उत्तरदायित्व को एक साथ जोड़ा है। उन्होंने कहा, “विकसित भारत 2047 की यात्रा स्वस्थ भारत से ही प्रारंभ होती है। स्वास्थ्य ही विकास का सच्चा इंजन है — यह मानव पूंजी का निर्माण करता है, उत्पादकता बढ़ाता है और प्रगति को स्थायी बनाता है।”
उन्होंने एनएएमएस से आग्रह किया कि वह नीति निर्माण और स्वास्थ्य नवाचार का सशक्त थिंक टैंक बने। “एनएएमएस को भविष्य की भारतीय चिकित्सा व्यवस्था को आकार देने वाले शोध और नीति अंतर्दृष्टि का केंद्र बनना चाहिए।”
डॉ. पॉल ने सरकारी मेडिकल कॉलेजों में अंग प्रत्यारोपण क्षमता को बढ़ाने की दिशा में नया संकल्प भी रखा। उन्होंने कहा, “हर नागरिक को जीवनरक्षक प्रत्यारोपण का अधिकार है। हमें तीन वर्षों में पचास किडनी और बीस लिवर प्रत्यारोपण दल सरकारी संस्थानों में तैयार करने होंगे।”
उन्होंने फैमिली मेडिसिन के महत्व पर बल देते हुए कहा, “जहां विशेषज्ञता ने उन्नति की है, वहीं सामान्य चिकित्सा को नहीं भूलना चाहिए। फैमिली मेडिसिन बचपन से वृद्धावस्था तक निरंतर देखभाल सुनिश्चित करती है।”
उन्होंने कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) के बदलते स्वरूप पर भी जोर देते हुए कहा, “भारत को AI का उपभोक्ता नहीं बल्कि सृजक बनना चाहिए — ऐसे समाधान विकसित करने चाहिए जो नैतिक, स्वदेशी और मानवता-सेवी हों।”
उन्होंने स्वामी विवेकानंद को उद्धृत करते हुए कहा, “सारी शक्ति आपके भीतर है; आप कुछ भी कर सकते हैं। आइए, इस शक्ति को स्वस्थ और समान भारत के निर्माण में लगाएं।”
अपने अध्यक्षीय संबोधन में डॉ. दिगंबर बेहरा, अध्यक्ष, एनएएमएस (भारत) ने 1961 से अब तक की अकादमी की गौरवशाली यात्रा को रेखांकित किया। उन्होंने कहा, “यह दीक्षांत समारोह उत्कृष्टता का उत्सव है और हमारे मिशन — चिकित्सा शिक्षा, अनुसंधान और नीति को राष्ट्रीय कल्याण की दिशा में अग्रसर करने — का पुनःसंकल्प भी।” उन्होंने बताया कि वर्तमान में एनएएमएस के पास 1,100 से अधिक फेलो हैं, जिनमें दो भारत रत्न, 19 पद्म भूषण और 53 पद्मश्री सम्मानित सदस्य शामिल हैं।
उन्होंने कहा कि एनएएमएस भारतीय चिकित्सा जगत का नैतिक प्रहरी है, जो सार्वजनिक स्वास्थ्य नीति को दिशा देता है और “Navigate”, अनुसंधान फैलोशिप तथा “Annals of the National Academy” जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से युवा नेतृत्व तैयार कर रहा है। “जैसे-जैसे हम विकसित भारत 2047 की ओर बढ़ रहे हैं, अकादमी विज्ञान और सेवा के समन्वय के माध्यम से यह सुनिश्चित करेगी कि ज्ञान सदा मानवता की सेवा में रहे।”
कार्यक्रम के प्रारंभ में प्रो. विवेक लाल, निदेशक, पीजीआईएमईआर ने इस ऐतिहासिक दीक्षांत समारोह की मेजबानी पर गर्व व्यक्त किया और कहा कि यह संस्थान एवं राष्ट्र दोनों के लिए गौरव का क्षण है।
उन्होंने बताया कि पीजीआईएमईआर स्वास्थ्य समानता की दिशा में अग्रणी भूमिका निभा रहा है, जहां 70% से अधिक मरीज आयुष्मान भारत के अंतर्गत आते हैं और पात्र मरीजों के लिए किडनी, हार्ट और नी ट्रांसप्लांट निःशुल्क किए जाते हैं ।
उन्होंने कहा, “हर पांच लाख के निवेश पर हम समाज को पचास लाख मूल्य की सेवा लौटाते हैं — यही करुणा, दक्षता और समर्पण की शक्ति है। पीजीआई आज एक सशक्त और उत्तरदायी संस्थान के रूप में उभर चुका है, जो हर संकट में राष्ट्र की सेवा को तत्पर है।”
इस वर्ष के दीक्षांत समारोह में 45 विशिष्ट शिक्षाविदों को फेलोशिप, 100 प्रतिष्ठित पेशेवरों को सदस्यता, और 14 नवोदित विशेषज्ञों को एसोसिएट फेलोशिप प्रदान की गई। साथ ही तीन महिला वैज्ञानिकों और सात प्रोफेसर एमेरिटस को उनके आजीवन योगदान और अनुसंधान उपलब्धियों के लिए सम्मानित किया गया। ये सभी सम्मानित व्यक्तित्व अकादमी की उस परंपरा का प्रतिनिधित्व करते हैं जो उत्कृष्टता, प्रेरणा और चिकित्सा विज्ञान के सर्वोच्च आदर्शों को सहेजती है।
दीक्षांत समारोह की शुरुआत एक भव्य शैक्षणिक जुलूस से हुई, जिसकी अगुवाई एनएएमएस के अध्यक्ष एवं पदाधिकारियों ने की। समारोह में नए फेलो और सदस्यों को उनके योगदान के लिए स्क्रॉल प्रदान किए गए और उन्होंने चिकित्सा सेवा की शपथ दोहराई।
राष्ट्रीय चिकित्सा विज्ञान अकादमी (भारत) का यह 65वां दीक्षांत समारोह विज्ञान और सेवा, नवाचार और सहानुभूति, तथा ज्ञान और उद्देश्य के समन्वय की उस भावना का प्रतीक बना — जो एनएएमएस और पीजीआईएमईआर दोनों की पहचान है।