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स्वास्थ्य : गले के पिछले हिस्से में गाढ़े रंग की मोटी त्वचा (एकैनथॉसिस निग्रिकैंस, टाइप 2 डायबिटीज़ से पीड़ित लोगों में लिवर की बीमारी का संकेतक : शोधकर्ता

✍️ सोहन रावत, चंडीगढ़

चंडीगढ़ : फोर्टिस सी-डॉक हॉस्पिटल फॉर डायबिटीज़ एंड एलायड साइंसेज़, एम्स, डायबिटीज़ फाउंडेशन (इंडिया) और नेशनल डायबिटीज़ ओबेसिटी एंड कोलेस्ट्रॉल फाउंडेशन (एनडीओसी) द्वारा हाल ही में किए गए अध्ययन से पता चला है कि त्वचा पर आसानी से दिखने वाली स्थिति एकैनथॉसिस नाइग्रिकैंस, टाइप 2 डायबिटीज़ से पीड़ित भारतीयों में लिवर सेल को हुए नुकसान (फाइब्रॉसिस) के जोखिम का संकेत मिलता है।

मोटी, गाढे रंग और वेल्वेट जैसी दिखने वाली ऐसी त्वचा आम तौर पर गर्दन के पिछले हिस्से में पाई जाती है। हालांकि, कांख, कोहनी, घुटने और पेट व जांघ के बीच के हिस्से में ऐसी त्वचा देखने को मिल सकती है। आम तौर पर यह ऐसे लोगों में होता है जो इंसुलिन रेसिस्टेंस होते हैं। दिलचस्प बात यह है कि चिकित्सा की दुनिया से संबंध न रखने वाले लोग भी बहुत आसानी से इसकी पहचान कर सकते हैं!

यह अध्ययन डॉ. अनूप मिश्रा, पद्म श्री, एग्ज़ीक्यूटिव चेयरमैन एवं डायरेक्टर, डायबिटीज़ एंड एनडॉक्रिनोलॉजी, फोर्टिस सी-डॉक हॉस्पिटल फॉर डायबिटीज़ एंड एलाइड साइंसेज़ ने पार्टनर संस्थानों का प्रतिनिधित्व करने वाले कोयल दत्ता, सूर्य प्रकाश भट्ट, स्वाति मदान, इरशाद अहमद अंसारी, कनिका त्यागी और शिवम पांडेय के साथ मिलकर किया है।

डॉ. अनूप मिश्रा, पद्मश्री, अध्ययन के सह-लेखक, एग्ज़ीक्यूटिव चेयरमैन व डायरेक्टर, डायबिटीज़ एंड एनडॉक्रिनोलॉजी, फोर्टिस सी-डॉक हॉस्पिटल ने कहा, “इस केस-कंट्रोल अध्ययन में टाइप 2 डायबिटीज़ के मरीज़ों को शामिल किया गया। इस अध्ययन में हमने एकैनथॉसिस नाइग्रिकैंस औऱ हेप्टिक स्टेटॉसिस और फाइब्रोसिस (लिवर के नुकसान के बारे में जानकारी देने वाले संकेत) के बीच के संबंध को बताने वाली महत्वपूर्ण जानकारी दी है।”

प्रमुख लेखक कोयल दत्ता, क्लिनिकल एसोसिएट एंड डायबिटीज़ एजुकेटर, फोर्टिस सी-डॉक हॉस्पिटल ने कहा, “महत्वपूर्ण बात यह है कि हमारे अध्ययन से लिवर फैट और उसके सख्त होने के क्लिनिकल संकेतक के तौर पर एकैनथॉसिस नाइग्रिकैंस से जुड़ा नया डेटा मिला है जो अब तक की किसी भी रिपोर्ट में नहीं मिला था। इसके अलावा, इन जानकारियों से टाइप 2 डायबिटीज़ के मरीज़ों के लिवर की सेहत का पता लगाने के लिए आसानी से पहचाने जा सकने वाले नए क्लिनिकल संकेतक के बारे में जानकारी मिली है।”