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चंडीगढ़/ सड़कों पर बेसहारा पशुओं और आवारा कुत्तों की भरमार, बड़े हादसे होने का खतरा बरकरार : चंडीगढ़ युवा दल

जनता द्वारा लाखों का टैक्स भरने करने के बाद भी नहीं हो रही कोई कार्यवाही : सुनील यादव

चंडीगढ़ : स्मार्ट सिटी चंडीगढ़ में बेसहारा पशुओं व आवारा कुत्तों की भरमार लोगों के लिए बड़ी परेशानी बनती जा रही। आजकल सबसे ज्यादा सड़क हादसे सड़कों पर घूम रहे बेसहारा पशुओं की चपेट में आने से हो रहें है। पिछले दिनों में कई लोग इसके साथ घायल हो चुके हैं। जिसके बाद भी चंडीगढ़ नगर निगम गंभीर नहीं दिखाई दे रहा है ।

अपनी शिकायतों की जानकारी देते हुए चंडीगढ़ युवा दल के प्रधान विनायक बांगिया व संयोजक सुनील यादव ने बताया कि दर्जनों बार चंडीगढ़ नगर निगम में अधिकारियों को शिकायत करने के बाद भी इन बेसहारा पशुओं व आवारा कुत्तों पर रोकथाम के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। ऐसे में शहर में बेसहारा पशुओं की बढ़ती संख्या लोगों के लिए सिरदर्द और जान को खतरा बन रही है। शहर के मुख्य बाजार सेक्टर 19, 15 व पीजीआई जैसे संस्थान में कुत्तों का आतंक है। इसके बावजूद भी जिम्मेदार अधिकारियों ने आंखों पर पट्टी बांध रखी है ।

चंडीगढ़ युवा दल के प्रधान विनायक बांगिया ने बताया कि पीजीआई परिसर में रहने वाले लोग खौफ के साए में रहने को मजबूर हैं क्योंकि नगर निगम के कर्मचारी उन लोगों से ही कुत्तों को पकड़ने में मदद मांग रहे हैं। कर्मचारियों ने कुत्तों से सुरक्षा के लिए पीजीआई प्रशासन को भी पत्र लिखकर गुहार लगाई है। हम चंडीगढ़ नगर निगम से मांग करते है की जल्द से जल्द इन आवारा कुत्तो की समस्या से निजात दिलाने के लिए ठोस से ठोस कदम उठाया जाएं।

चंडीगढ़ युवा दल संयोजक सुनील यादव ने निगम कमिश्नर से मांग करते हुए कहा कि सड़कों पर घूम रहे बेसहारा पशुओं व आवारा कुत्तों के आतंक पर जल्द से जल्द लगाम कसी जाए। जब लोगों के द्वारा बिल के रूप में काऊ टैक्स सहित अन्य टैक्स दिया जाता है फिर भी चंडीगढ़ नगर निगम इनकी देखरेख क्यों नहीं कर रहा।

ज्ञात हो कि वर्ष 2019 में तत्कालीन प्रशासक वीपी सिंह बदनौर के कहने पर नगर निगम ने लावारिस कुत्तों की समस्या से निपटने को एक राष्ट्रीय स्तर का सेमिनार आयोजित किया था। इस पर लाखों रुपये खर्च किए गए थे। इस दौरान विशेषज्ञों ने कहा था कि खतरनाक नस्ल के कुत्तों को पालने पर प्रतिबंध लगाया जाए, फीमेल डॉग की नसबंदी की जाए, नसबंदी का रिकॉर्ड रखा जाए ताकि दवा का असर खत्म होने के बाद उस कुत्ते की तत्काल वैक्सीनेशन की जा सके। कुत्तों के खरीदने व बेचने का रिकॉर्ड बने, जागरूकता शिविर लगाए जाएं और वैक्सीन लगाने वाली दुकानों का पंजीकरण हो। अब तक इनमें से एक भी सुझाव पर अमल नहीं हुआ और न ही कोई बैठक बुलाई गई।