कविता/ संभ्रांत परिवार
एक कहानी मैं सुनाता
विषय है संभ्रांत परिवार
सुखी – चैन तब होती है
जब होता है संभ्रांत परिवार
परिवार भला चंगा रहे
तब मिलेगी हमें संस्कार
कोई दिक्कत नहीं होगी
खुशी से मिलेगी हमें संसार
सदस्यों की संख्या नियंत्रण हो
उसे कहते हैं सिमित परिवार
इसी से होती काफी बरक्कत
जब रहते हैं आपसी मिलनसार
माता-पिता,भाई-बहन जब होता
आपसी में होता सबका प्यार
जन समर्थन सभी को मिलता
इसी से होता आपसी सत्कार
मिल – जुल कर रहें आपस में
समृधि होगा परिवारिक आकार
गांव समाज में मिलेगी प्रतिष्ठा
तब कर पाएंगे सबका उपकार
कुछ परिवार मिलकर होती है
समाज का एक बड़ा आकार
परिवार से होती समाज का निर्माण
इस प्रकार ले लेगी गांव का आकार
मिल बैठकर सब विचार करें
सभी का लें इसमें भागीदार
राज्य का नाम बड़ा रौशन होगा
जब मिलेगी अच्छे सलाहकार
बहार होगी अब राज्य में
लोग समझेंगे हुई चमत्कार
विकसित होना स्वाभाविक है
सभी करेंगे खुलकर स्वीकार
घोर परिश्रम तो करना पड़ता
मिल जाते हैं सोने का भंडार
हुई कहानी कितना और सुनाते
कभी नहीं होगी आपस में हाहाकार
कहते हैं ‘कवि सुरेश कंठ’
निस्वार्थ में मिलते कई सार
अब विराम देते हैं कलम को
सभी वन्धुओं को हमारा नमस्कार