सहरसा/ शिशुओं के लिए मां का दूध सर्वोत्तम आहार : सिविल सर्जन
शिशुओं के सम्पूर्ण विकास के लिए जरूरी है स्तनपान
सहरसा : नवजात से लेकर दो वर्ष तक के बच्चों को उनकी मां से मिलने वाला दूध उनका सर्वोत्तम आहार है। महिलाओं को सलाह दी जाती है कि शिशु जन्म के समय उनमें बनने वाला पहला पीला गाढ़ा दूध कौलेस्ट्रोम अपने बच्चों को अवश्य पिलायें। यह शिशु की प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करता है। जो आगे चलकर शिशु मृत्यु दर में कमी लाने में काफी सहायक सिद्ध होता है। यही नहीं अपने शिशु को मां द्वारा स्तनपान कराने से मां को स्तन कैंसर होने का खतरा कम तो होता ही है साथ में माताओं के प्रसवोत्तर शारीरिक पुनर्गठन में काफी सहायता मिलती है। इस प्रकार स्तनपान यानि अपने बच्चों को उनकी माता द्वारा दूध पिलाया जाना सभी प्रकार से लाभदायक है।
सिविल सर्जन डॉ.किशोर कुमार मधुप ने कहा मां के शरीर में दूध का बनना पूर्णतः प्राकृतिक प्रक्रिया है। इसमें किसी बाहरी कारणों का कोई हस्तक्षेप नहीं है। इस कारण मां के शरीर में उनके ही शिशु के लिए बनने वाले दूध पर सिर्फ और सिर्फ उस शिशु का ही अधिकार है। इससे उसे वंचित न करें। अपने शिशु को अपना दूध अवश्य पिलायें। शिशु अपने जन्म से 6 माह तक केवल अपने मां के दूध पर ही निर्भर रहता है। इस 6 माह में शिशु के सम्पूर्ण शारीरिक एवं मानसिक विकास की नींव पड़ती है। मां का दूध शिशुओं के लिए एक सुपाच्य आहार है जिससे बच्चों को डायरिया नहीं होती है। वहीं मां की दूध बच्चों की प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूती प्रदान करने में अपनी अहम भूमिका निभाती है, जिससे आने वाले समय में शिशु अन्य कई प्रकार की बीमारियों से ग्रसित नहीं हो पाता है। 6 माह बाद ही शिशुओं को अनुपूरक आहार दिया जाना आरंभ कर दिया जाता है। यह भी शिशुओं के शारीरिक सहित अन्य प्रकार के विकास का एक महत्वपूर्ण पड़ाव होता है। इस दौरान बच्चों को अतिसुपाच्य एवं पौष्टिक तत्वों से भरपूर अनुपूरक आहार दिया जाता है। जैसे- दाल का पानी, अच्छी तरह से पकायी हुई खिचड़ी व खीर आदि। इस प्रकार अनुपूरक आहार के साथ बच्चों को दो साल या उससे अधिक समय तक मां के दूध का मिलना उसके सम्पूर्ण विकास के लिए जरूरी है।
डॉ किशोर कुमार मधुप ने बताया शिशुओं को दूध पिलाते रहने से मां के शरीर में दूध बनता रहता है। ऐसा देखा गया है कि बच्चे के दूध पीना छोड़ने के कुछ समय बाद मां के शरीर में दूध बनने की प्रक्रिया अपने-आप बंद हो जाती है। जिन बच्चों को अपने बचपन में मां का दूध पर्याप्त रूप से नहीं मिलता है उनमें बचपन में मधुमेह की बीमारी से ग्रसित हो जाने की प्रबल संभावना रहती है|