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सहकार से समृद्धि – भारत के विकास की कुंजी : आर एस सोढ़ी

यदि भारत को तेजी से और समानता के साथ विकास करना है, तो हमें यह सुनिश्चित करना होगा है कि ‘भारत’ भी ‘इंडिया’ के साथ कदम मिलाकर विकास के पथ पर आगे बढ़े। ‘भारत’ व्यापार करने के सहकारी तरीके से भी विकसित हो सकता है, क्योंकि छोटे लोगों का ध्यान रखने वाला यही एकमात्र मॉडल है। हमारी भारतीय अर्थव्यवस्था मोटे तौर पर तीन ‘S’ पर आधारित है – जो इस प्रकार हैं-
(क) छोटे किसान, छोटे व्यापारी और छोटे श्रमिक
(ख) छोटे खुदरा विक्रेता और छोटे बिचौलिए
(ग) छोटे उपभोक्ता

‘इंडिया’ के बढ़ते धन और समृद्धि को ‘भारत’ के साथ साझा करने के लिए, हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि ये तीनों ‘S’ विकास प्रक्रिया में शामिल हों। हमारे नीति-निर्माता यह समझते हैं कि वह बिजनेस मॉडल जो इन तीनों ‘S’ का सही तरीके से ध्यान रख सकता है, वह व्यवसाय या बिजनेस करने का सहकारी तरीका ही है। सहकारी समितियां शहरी और ग्रामीण भारत के बीच या ‘इंडिया’ और ‘भारत’ के बीच बढ़ती आय असमानता को कम करने में मदद कर सकती हैं।

सहकारी मॉडल ने भारतीय अर्थव्यवस्था के हाशिए पर पड़े तबके को एक साथ लाने और समाज में उनके उत्थान में सहायता करने में अपने महत्व को बार-बार साबित किया है। जनता के स्वामित्व में लोकतांत्रिक रूप से चलने वाली सहकारी समितियां, यह सुनिश्चित करती हैं कि आर्थिक विकास समाज के सभी वर्गों द्वारा समान रूप से साझा हो।

इस राष्ट्रीय उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए हमारे माननीय प्रधानमंत्री जी ने ‘सहकार से समृद्धि’ का नारा दिया है। इसका अर्थ है सहयोग के माध्यम से समृद्धि। उन्होंने एक अलग सहकारिता मंत्रालय का भी गठन किया है जिसका नेतृत्व माननीय गृहमंत्री श्री अमित शाह कर रहे हैं। हमारी सरकार समझती है कि भारत के समावेशी विकास के लिए हमें सभी क्षेत्रों में अधिक से अधिक सहकारी समितियों की आवश्यकता है क्योंकि सहकारी व्यवसाय मॉडल केवल कृषि क्षेत्र में ही नहीं, बल्कि कहीं भी लागू किया जा सकता है।

सहकारी संस्थाओं को और सुदृढ़ करने के लिए पिछले केंद्रीय बजट में लगभग 900 करोड़ रुपये का बजट आवंटन किया गया था। यह सहकारी संस्थाओं और उसकी धारणा पर केंद्र सरकार के विश्वास को दर्शाता है। बजट में प्राथमिक कृषि सहकारी समितियों (PACS) के डिजिटलीकरण के लिए 350 करोड़, सहकारी शिक्षा और प्रशिक्षण के लिए बजट, और सहकारी समितियों को परिवर्तित करने में सहयोग के रूप में उनके वित्त, प्रौद्योगिकी और बुनियादी ढांचे के लिए अम्ब्रेला योजना (Umbrella Scheme) “सहकारिता के माध्यम से समृद्धि” के माध्यम से 274 करोड़ रुपए का आवंटन शामिल है।

भारत में सहकारी आंदोलन 117 वर्ष से अधिक पुराना है। इसने देश की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हमारे समाज के कमजोर वर्गों, जैसे छोटे एवं सीमांत किसानों, भूमिहीन मजदूरों, मछुआरों और कारीगरों को विकास प्रक्रिया में सम्मिलित करने में सहकारी समितियां महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। इस जीवंत सहकारी आंदोलन को हमें धन्यवाद देना चाहिए, जिसके कारण भारत पूरी दुनिया में दुग्ध उत्पादन में प्रथम स्थान पर है। क्रेडिट सहकारी समितियों और सहकारी बैंकों ने बैंकिंग/एसएचजी नेटवर्क के माध्यम से देश के कई क्षेत्रों में साहूकारों की बेड़ियों को तोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

भारतीय डेयरी क्षेत्र में, ग्रामीण भूमिहीन, सीमांत और छोटे किसानों के लिए डेयरी सहकारी समितियों का महत्व कई गुना बढ़ गया है, क्योंकि सहकारी समितियों ने उन्हें बाजार तक पहुंच बनाने और अपने उपज तथा उत्पादन का सही मूल्य प्राप्त करने में अपनी सामूहिक ताकत का लाभ उठाने में सक्षम बनाया है। डेयरी सहकारी आंदोलन ने कुछ ही दशकों में भारत को दूध की कमी वाले राष्ट्र से विश्व के सबसे बड़े दूध उत्पादक देश बना दिया है। इसने हमारे देश को आत्मनिर्भरता प्राप्त करने में सक्षम बनाकर राष्ट्र निर्माण में अत्यधिक योगदान दिया है। साथ ही, एक महत्वपूर्ण क्षेत्र- दूध और दूध उत्पादों में हमारी राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा की रक्षा की है।

यदि सहकारी मॉडल नहीं होता तो, तो भारत आज अपने पड़ोसी देशों और अन्य एशियाई देशों की भांति डेयरी उत्पादों की मांग को पूरा करने के लिए आयात पर निर्भर होता और इसकी कीमत आज भारत में आयात होने वाले सालाना 5-6 लाख करोड़ रुपये के खाद्य तेल के बराबर होती। डेयरी सहकारी समितियों की विशिष्टता यह है कि यह ग्रामीण भारत में 365 दिनों (वर्ष पर्यंत) के लिए रोजगार (विशेष रूप से महिलाओं को) उत्पादकों को खराब होने वाली वस्तुओं के लिए गारंटीकृत बाजार, और पूरे वर्ष नकदी प्रवाह की सुनिश्चितता प्रदान कर रही है जो अंततः महिला सशक्तिकरण और खाद्य सुरक्षा की ओर ले जाती है।

पूरे भारत में डेयरी क्षेत्र सहकारी मॉडल की प्रतिकृति ने न केवल भारतीय अर्थव्यवस्था को भारी व्यय से बचाया है बल्कि कुल आय का 75-80% उत्पादकों को दिलाने में भी सफल रहा है। केवल कुछ वर्षों के लिए ही नहीं, बल्कि विगत कई दशकों से भारत की डेयरी सहकारी समितियों ने यह सुनिश्चित किया है कि दूध उत्पादक सदस्य, जिनके पास पूरी आपूर्ति श्रृंखला है, उन्हें उपभोक्ता से प्राप्त होने वाले रुपये का कम से कम 75-80% वापस मिले जो डेयरी क्षेत्र में विकासशील देशों में बहुत कम है जहाँ दूध उत्पादक उपभोक्ता रुपये का लगभग 30-35% ही प्राप्त कर पाता है।

व्यवसाय में सहकारी मॉडल अपनाने के प्रमुख लाभों में शामिल हैं- बेहतर सौदेबाजी की शक्ति, किफायती लागत, अंतिम उपभोक्ता के लिए सस्ती पेशकश, नई प्रौद्योगिकियों के लिए तेजी से अनुकूलन, वित्त तक बेहतर पहुंच और वितरण सुविधाओं का तेजी से विस्तार सम्मिलित है। ‘भारत’ और ‘इंडिया’ के बीच धन का समान वितरण सुनिश्चित करने के लिए यह आवश्यक है कि राज्य सरकारें काम करने की नियंत्रणात्मक शैली से अधिक विकासात्मक भूमिका की ओर बढ़ें, सहकारी समितियों को अधिक आधुनिक और समकालीन बनाने में मदद करें तथा शहरी भारत में सहकारी व्यवसाय मॉडल का अनुकरण करें।

वस्तुतः समाज और अर्थव्यवस्था कोई भी हो, सहकारिता अपने सदस्यों और संभावित ग्राहकों दोनों के लिए महत्वपूर्ण योगदान दे सकती है। सहकारी संरचना किसी भी स्थिति में सबसे अच्छा काम करती है जहां व्यक्तिगत उद्यमी कमजोर होता है, लेकिन यह प्रौद्योगिकी के उपयोग के साथ बड़ी संख्या में सदस्यों को गठबंधन की सामूहिक ताकत से लाभान्वित करने में सक्षम बनाती है। सामूहिक गठबंधन समाज के भीतर जरूरतों और समस्याओं को हल करते हुए व्यक्तिगत सदस्य को बाजार पहुंच, वित्तीय पहुंच और लाभकारी आजीविका प्राप्त करने में मदद करता है।

आसान पूंजी के प्रावधान, पेशेवरों को आकर्षित करना, डिजिटल प्रौद्योगिकी और विपणन सहायता किसी भी नई सहकारी समिति के गठन के लिए मुख्य चुनौतियां होती हैं। इनके अलावा सबसे महत्वपूर्ण कारक नवगठित सहकारी समितियों को चलाने, मार्गदर्शन करने और विस्तार करने के लिए निस्वार्थ और समर्पित नेतृत्व की आवश्यकता है। आज के राजनीतिक नेतृत्व को पहले से ही सफल सहकारी समितियों से आगे बढ़ने और नए क्षेत्र या नवगठित सहकारी संस्था के पोषण पर अधिक ध्यान देने की जरूरत है।

‘सहकार से समृद्धि’ जमीनी स्तर पर, (क) स्थानीय उद्यमशीलता कौशल की सामूहिक ताकत का उपयोग द्वारा, (ख) तेजी से और समान आर्थिक विकास द्वारा, (ग) आत्म-निर्भर भारत की दृष्टि को तेजी से प्राप्त करने के द्वारा तथा (घ) ‘वोकल फॉर लोकल’ के माध्यम से सकारात्मक सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन द्वारा लोगों पर आधारित विकासात्मक प्रयासों को आसान बना सकती है।

वैश्विक अर्थव्यवस्था नए व्यवसायों और स्टार्टअप की लहर अनुभव कर रही है। ऐसे में यह आश्चर्य की बात नहीं है कि उभरते व्यवसाय छोटे उत्पादकों या सेवा प्रदाताओं और उपभोक्ताओं को जोड़ने वाले एकत्रीकरण या सहकार के मॉडल पर आधारित हैं और लागत प्रभावी डिजिटल मार्केटिंग प्लेटफॉर्म प्रदान करते हैं। जोमैटो, उबर और अमेजन जैसे यूनिकॉर्न ने एकत्रीकरण या सहकार की क्षमता का उपयोग करके अपने व्यवसाय का निर्माण किया है। सामान्य धारणा के विपरीत, एक सहकारी व्यवसाय मॉडल केवल डेयरी, ऋण या आवास क्षेत्रों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि लगभग सभी प्रकार की आर्थिक गतिविधियों के लिए अपनाया जा सकता है, जहां छोटे उत्पादक या सेवा प्रदाता, छोटे बिचौलिए और छोटे उपभोक्ता शामिल होते हैं। खाद्य वितरण, सुरक्षा और मजदूर, हाउसमेड सेवाएं, टैक्सी आदि जैसे क्षेत्रों में सहकारी समितियों का गठन करना भी संभव और जरूरी है।

“सहकार से समृद्धि” केवल एक नारा नहीं है, बल्कि यह एक ऐसा साधन है जो ग्रामीण समृद्धि में सुधार करेगा और असमानता को कम करेगा। साथ ही, यह “आत्मनिर्भर भारत” को एक वास्तविक बनाएगा। यह भारत में लाखों लोगों को आजीविका प्रदान करने के साथ-साथ धन के समान वितरण को बढ़ावा देता है। सहकारिता ‘इंडिया’ और ‘भारत’ दोनों के आर्थिक विकास के लिए एक साधन है और यह भारतीय लोकतंत्र में लोगों के विश्वास को बढ़ाने के लिए भी काम करेगा।