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मोहाली/ विशेषज्ञों ने गंभीर और पुरानी बीमारियों के लिए अधिक दिनों के लिए दवाएं देने की रखी मांग

✍️ सोहन रावत, चंडीगढ़

मोहाली : हर हफ्ते काम से समय निकालकर नजदीकी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में अपनी दवा को प्राप्त करने के लिए बार-बार जाना रोगियों के लिए इलाज के अनुरूप बने रहने में एक बड़ी बाधा रही है। कंज्यूमर वॉयस ने पुरानी बीमारियों के लिए अधिक दिनों तक चलने वाली प्रिस्क्रिप्शन रिफिल की सिफारिश की है।

पिछले साल 14 अप्रैल को जारी किए गए सभी राज्यों के लिए स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की तरफ से जारी एक गाइडेंस नोट में सलाह दी गई थी कि ‘‘हाई ब्लडप्रेशर, डायबटीज यानि मधुमेह, क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज और मानसिक स्वास्थ्य के सभी ज्ञात रोगियों को आशा या स्वास्थ्य उप के माध्यम से 3 महीने तक दवाओं की नियमित आपूर्ति प्राप्त करने के लिए वैध हैं। उनको ये दवा एएसएचए या हेल्थ सब-सेंटर्स में प्रिस्क्रिप्शन पर प्राप्त होनी चाहिए।’’

मोहाली चैप्टर के कार्डियोलॉजिस्ट और आईएमए प्रेसिडेंट डॉ.एसएस सोढ़ी ने कहा कि तय दिनों से विस्तारित दिनों के प्रिस्क्रिप्शन के लिए गाइडेंस के अनुसार, जब देश भर में एक कठिन लॉकडाउन में प्रवेश कर रहा था, सार्वजनिक क्षेत्र की स्वास्थ्य प्रणाली के लिए एक गेम चेंजर हो सकता है। राष्ट्रीय दिशानिर्देशों के तहत अनुशंसित सामान्य रूप से उपलब्ध और सस्ती दवा के साथ बीपी को नियंत्रण में रखें। समाज के सबसे कमजोर वर्ग जैसे दिहाड़ी मजदूर के लिए स्वास्थ्य और कल्याण केंद्रों (एचडब्ल्यूसी) में अंतिम स्थान पर दवा की उपलब्धता हमेशा सरकारी स्वास्थ्य देखभाल की आखिरी समाधान है। एमओएचएफडब्ल्यू की ओर से एक नोट, जिसमें उच्च रक्तचाप जैसी स्थितियों के लिए कम से कम 3 महीने की दवा पीएचसी या आशा कार्यकर्ताओं के माध्यम से उपलब्ध कराने की सिफारिश की गई थी, इस अंतर को दूर करने के लिए सही दिशा में एक कदम था। डॉ. सोढ़ी ने यह भी नोट किया कि भारत में, उच्च-रक्तचापरोधी दवाओं यानि हाई ब्लड-प्रेशर दवाओं को ना लेने की दर 45 प्रतिशत जितनी अधिक है और इससे आमतौर पर स्ट्रोक जैसी हृदय संबंधी जटिलताएं होती हैं।

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 का हवाला देते हुए, कंज्यूमर वॉयस के सीओओ श्री आशिम सान्याल ने कहा कि ‘‘दवाओं तक पहुंच एक मौलिक और उपभोक्ता अधिकार है। समाज के कमजोर वर्गों को विशेष रूप से इन सुरक्षा उपायों की आवश्यकता है। अपनी आवश्यक दवाओं का स्टॉक करने के लिए निकटतम प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल केंद्र की कई यात्राएं उन लोगों के लिए एक बड़ी बाधा हो सकती हैं जो दैनिक मजदूरी पर निर्भर हैं या पीएचसी में आने-जाने का किराया वहन करना मुश्किल है। जैसा कि दुनिया गरीबों और हाशिए पर रहने वालों को कम से कम 90 दिनों की दवाएं उपलब्ध कराने की आवश्यकता को पहचानती है, उपभोक्ता अधिकार संगठन भी इस मांग के लिए एक साथ आ रहे हैं कि हमारे देश के हर जिले में इस तरह के उपाय अपनाए जाएं।’’