News4All

Latest Online Breaking News

चंडीगढ़/ प्रख्यात आर्किटेक्ट सुरिंदर बाहगा की पुस्तक, ’फॉर्म फॉलोज रूट्स – आर्किटेक्चर फॉर इंडिया 1985 – 2021’ का हुआ विमोचन

बाहगा की पुस्तक भारतीय वास्तुकला का सार दर्शाती है

चंडीगढ़ : आर्किटेक्चर (वास्तुकला) में 40 वर्षों के अनुभव के बाद, प्रख्यात आर्किटेक्ट सुरिंदर बाहगा अपनी पुस्तक, ’फॉर्म फॉलोज रूट्स – आर्किटेक्चर फॉर इंडिया 1985 – 2021’ लेकर आए हैं। तुर्की स्थित आर्किटेक्चुअल हिस्ट्रोरियन डॉ. इबरु ओजेकेटोकमेसी द्वारा संपादित, यह पुस्तक 1985 से 2021 तक भारत की समकालीन वास्तुकला की एक अंतर्दृष्टि है, जिसमें बाहगा का अपना काम भी शामिल है।

पुस्तक, जिस पर आर्किटेक्ट बाहगा ने 23 वर्षों तक काम किया है, का विमोचन शुक्रवार को चंडीगढ़ प्रेस क्लब में प्रतिष्ठित आर्किटेक्ट एसडी शर्मा द्वारा चंडीगढ़ के कई प्रतिष्ठित आर्किटेक्टस, लेखकों और अन्य प्रमुख हस्तियों की उपस्थिति में किया गया।

पुस्तक का प्रकाशन व्हाइट फाल्कन पब्लिशिंग ने किया है जबकि प्राक्कथन लंदन के जाने-माने लेखक प्रोफेसर रॉबर्ट हार्बिसन ने लिखा है। यह पुस्तक इंडियन आर्किटेक्चर काउंसिल ऑफ आर्किटेक्चर द्वारा समर्थित है और देश के सभी आर्किटेक्चर काॅलेजों में पहले से ही अनुशंसित है।

बाहगा ने पुस्तक के बारे में बोलते हुए कहा, ’भारत की स्वतंत्रता के बाद की आधुनिक वास्तुकला को 1985 तक विभिन्न पुस्तकों में अच्छी तरह से दस्तावेजित किया गया है, जो मुख्य रूप से भारतीय मध्यम वर्ग और समाज के आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग का वास्तविक प्रतिनिधित्व नहीं करने वाले कुलीन वर्ग के कार्यों पर केंद्रित है’।

उन्होंने आगे कहा, “यह प्रकाशन छोटे शहरों, कस्बों और गांवों के उन कार्यों को कवर करने का एक प्रयास है, जिन्हें पूरी तरह से अलग तरह से निपटने की आवश्यकता होती है, क्योंकि ऐसे स्थानों पर कुशल जनशक्ति और मशीनरी आसानी से उपलब्ध नहीं होती हैं। कार्य का मुख्य भाग प्रतिष्ठित परियोजनाओं के कुछ अपवादों को छोड़कर, निम्न और मध्यम आय समूहों को पूरा करने वाली परियोजनाओं पर प्रकाश डालता है। वास्तुकला के क्षेत्र से वर्तमान मुद्दों को व्यावहारिक उदाहरणों का हवाला देकर पुस्तक में संबोधित किया गया है।

पुस्तक में चंडीगढ़ कैपिटल कॉम्प्लेक्स के पीछे टाटा टावर्स के विवादों और चंडीगढ़ कॉलेज ऑफ आर्किटेक्चर के पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज के साथ विलय पर भी चर्चा की गई है। इसमें भारतीय इमारतों में कांच के अत्यधिक उपयोग के नकारात्मक प्रभाव और गलत प्रवृत्ति पर चर्चा की गई है और स्थानीय जलवायु और संस्कृति के अनुरूप इमारतों को डिजाइन करने पर ध्यान केंद्रित किया गया है। चंडीगढ़ हाउसिंग बोर्ड के मैंमबर्स ऑफ बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स और नगर निगम में पार्षद के रूप में बाहगा का काम भी छुआ गया है।

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ आर्किटेक्ट्स के प्रेसिडेंट, आर्किटेक्ट विलास अवचट ने कहा, यह व्यापक कार्य हमारे देश की समृद्ध वास्तुशिल्प विरासत को गहराई से उजागर करता है, जिसमें छोटे कस्बों, शहरों और गांवों की अद्भुत परियोजनाओं का सार शामिल है।’

इंडियन आर्किटेक्चर काउंसिल के प्रेसिडेंट, आर्किटेक्ट अभय पुरोहित ने कहा, पुस्तक आर्किटेक्चर पर साहित्य में एक मूल्यवान वृद्धि होगी, इसलिए आर्किटेक्चर काउंसिल ने भारतीय विश्वविद्यालयों में इसके प्रसार को मंजूरी दे दी है।

सीओए के पूर्व प्रेसिडेंट आर्किटेक्ट हबीब खान ने कहा कि ’यह पुस्तक न केवल समकालीन भारतीय वास्तुकला परिदृश्य को प्रदर्शित करती है बल्कि वास्तुकला के छात्रों के लिए एक भंडार बन जाएगी।’

ज्ञात हो कि आर्किटेक्ट सुरिंदर बाहगा चंडीगढ़ में आर्किटेक्चुअल आर्गेनाईजेशन ’साकार फाउंडेशन’ का नेतृत्व कर रहे हैं। श्री बाहगा को एनर्जी एफिशियेंट डिजाइन के लिए एचयूडीसीओ द्वारा 1995 में सर एम. विश्वेश्वरैया अवाॅर्ड दिया गया था। चंडीगढ़ में उनके बैपटिस्ट चर्च को मिनिस्ट्री ऑफ नाॅन-कन्वेंशनल एनर्जी सोर्स और टीईआरआई द्वारा भारत में सर्वश्रेष्ठ 41 एनर्जी एफिशियेंट बिल्डिंग्ज में से एक के रूप में चुना गया था। वे आर्किटेक्चरल एसोसिएशन, लंदन से माइकल वेंट्रिस अवाॅर्ड प्राप्तकर्ता हैं।

उन्होंने आर्किटेक्चर पर तीन पुस्तकों का सह-लेखन किया है। उन्होंने आईआईए, चंडीगढ़-पंजाब चैप्टर के प्रेसिडेंट के रूप में काम किया। उन्होंने आईआईए पब्लिकेशन बोर्ड के चेयरमेन और जर्नल ऑफ इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ आर्किटेक्ट्स के एडिटर के रूप में काम किया। उन्हें 2012-16 के कार्यकाल के लिए चंडीगढ़ नगर निगम में पार्षद के रूप में नामित किया गया था। वर्तमान में, वह केंद्र शासित प्रदेशों पर भारत के गृह मंत्री के एडवाइजरी कमेटी के सदस्य हैं। उन्हें 2021 से 2024 की अवधि के लिए चंडीगढ़ हाउसिंग बोर्ड के सदस्य और एफएसएआई के चंडीगढ़ चैप्टर के प्रेसिडेंट के रूप में नियुक्त किया गया है।