साहित्य

कविता/ मुट्ठी भर अनाज

Spread the love


सुन्दर भारत देश है हमारा
देखन में लगता कितना प्यारा

देश निर्भर है किसानों पर
जीवन निर्भर है अनाजों पर

अनाज उपजता मेहनत के वल पर
खेती निर्भर है बरसातों के ऊपर

पर्यावरण हरदम समतुल्य रहें
यह बराबर सभी को ध्यान रहे

जनता को चाहिए मुट्ठी भर अनाज
यही सब सोचते हैं सारे समाज

कल कारखाना की है भारी कमी
बिहार के जमीन में नहीं है नमीं

कैसे होगा खाद का पूरा उत्पादन
इस विषय का कैसे होगा निष्पादन

यह किसी को समझ में नहीं आता
सभी का ध्यान कमाने पर जाता

कहते हैं ” सुरेश कंठ ” कवि
बड़े विशाल है यहां के रवि

जनता जनार्दन की है यही पुकार
जीवन में मुख्य भूमिका है आहार ।


Spread the love
en_USEnglish