साहित्य

कविता/ कुछ नहीं है तेरा

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कुछ नहीं है जगत में तेरा
सब कुछ यहीं रह जाएगा

क्यों इठलाता है रे पगले
सत्य नाम ही रह जाएगा

चार दिन का जिंदगी है पगले
करते – धरते तुरंत बित जाएगा

मन में अच्छे कुछ कर ले बंदे
वरना बाद में तुम पछतायेगा

कर ले मन में दृढ़ प्रतिज्ञा
वरना सोचते रह जाएगा

करना है बहुत कार्य जग में
जिंदगी क्या दोबारा आएगा?

इतने में कुछ भक्ति करले बंदे
अमन – चैन यहां रह जाएगा

मन में तब कुछ शांति मिलेगी
परम धाम में स्वर्ग मिलेगा

सुनले”कवि सुरेश कंठ”की वाणी
अच्छी कर्मों का फल मिलेगा

धैर्य रखना सबसे बड़ी बात है
तब जाकर संतोष मिलेगा


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