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कविता/ छुट्टियाँ

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छुट्टियाँ हुई खतम् घर वीरान हो गये ।
गाँव के बच्चें शहर की शान हो गये ।।

देखते-देखते बीती दिवाली
घर हो गये खाली – खाली
भूख मर गयी जैसे अब तो
बैठे – बैठे कर रहे जुगाली

बच्चें ही कलयुग में भगवान हो गये ।
छुट्टियाँ हुई खतम् घर वीरान हो गये ।।

पटाखों के खाली खोके
रद्दी में बेचने से रोकें
अब उनको देख-देख के
बनते हैं यादों के मौके

बच्चों के साथ में पूरे अरमान हो गये ।
छुट्टियाँ हुई खतम् घर वीरान हो गये ।।

दिवाली की बची मिठाई
संजोरी – गूजे और सिंवाई
आंसुओ में भिगो-भिगो कर
रोते – रोते मैंने खाई

बच्चे भी जैसे अब मेहमान हो गये ।
छुट्टियाँ हुई खतम् घर वीरान हो गये ।।

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