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सुपौल/ फाइलेरिया उन्मूलन के लिए जिले में चलाया गया नाइट ब्लड सर्वे

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कुल 1208 नमूने किए गए इकट्ठा

फाइलेरिया उन्मूलन के लिए नाइट ब्लड सर्वे जरूरी

स्थानीय जनप्रतिनिधियों का मिला भरपुर सहयोग

सुपौल : फाइलेरिया उन्मूलन को लेकर जिले में नाइट ब्लड सर्वे अभियान चलाया गया । फाइलेरिया एक परजीवी रोग है जो एक कृमि जनित मच्छर के काटने से होता है। इसके परजीवी शरीर में प्रवेश करने के बाद इसके लक्षण पाँच से दस वर्षों के बाद उजागर होते हैं। यह एक घातक बीमारी है। फाइलेरिया या हाथी पांव के लक्षण समान्य तौर पर आरंभिक दिनों में दिखाई नहीं पड़ते हैं। इसलिए सरकार द्वारा फाइलेरिया उन्मूलन के लिए लोगों का नाइट ब्लड सर्वे कराया जा रहा है। ये परजीवी मानव शरीर में रात में अधिक सक्रिय रहते हैं इस कारण रात के समय रक्त के नमूने इक्ट्ठा कर इसकी जांच की जाती , जिससे लोगों के फाइलेरिया ग्रसित होने का पता चल पता है। फाइलेरिया से बचाव के लिए समय-समय पर सरकार द्वारा सर्वजन दवा सेवन कार्यक्रम भी चलाया जाता है। इसमें आशा घर-घर जाकर फाइलेरिया से बचाव की दवा का सेवन कराती हैं।


जिला वेक्टर जनित रोग नियंत्रण कार्यालय से विपीन कुमार ने बताया सरकार द्वारा जारी दिशा निर्देश के आलोक में जिले के सभी प्रखंडों में नाइट ब्लड सर्वे का आयोजन किया गया। इसके लिए स्थानीय जनप्रतिनिधियों से भी आवश्यक सहयोग लिया गया। नाइट ब्लड सर्वे के दौरान जिले के पिपरा प्रखंड से 150, त्रिवेणीगंज से 156, छातापुर से 75, प्रतापगंज से 117, राघोपुर से 195, सरायगढ़ भपटियाही से 160, बसंतपुर से 150, निर्मली से 75, किशनपुर से 93 नमूने इकट्ठा किये गये जिसकी जांच की जाएगी। इसके लिए जिले के सभी प्रखंडों में जांच दल गठित किये गये हैं। उन्होंने बताया जिन जगहों पर नाइट ब्लड सर्वे के दौरान अपेक्षा से कम नमूने इकट्ठे हो पाये हैं वहां आगे भी नइट ब्लड सर्वे अभियान चलाकर नमूने इकट्ठा किये जायेंगे। फाइलेरिया उन्मूलन के लिए इसके प्रसार पर रोक लगाना जरूरी है।

जिला वेक्टर जनित रोग नियंत्रण पदाधिकारी डा. दीप नारायण राम ने बताया फाइलेरिया मादा क्यूलेक्स मच्छर के काटने से फैलता है। आमतौर पर फाइलेरिया के लक्षण स्पष्ट रूप से दिखाई नहीं देते, लेकिन बुखार, बदन में खुजली व सूजन की समस्या दिखाई देती है। इसके अलावा पैरों और हाथों में सूजन, हाथी पांव और हाइड्रोसील; अंडकोषों की सूजन, फाइलेरिया के लक्षण हैं। फाइलेरिया हो जाने के बाद धीरे-धीरे यह गंभीर रूप लेने लगता है। इसका कोई ठोस इलाज नहीं है। लेकिन इसकी नियमित और उचित देखभाल कर जटिलताओं से बचा जा सकता है। उन्होंने बताया नाइट ब्लड सर्वे अभियान के तहत रक्त संग्रह केंद्रों पर ग्रामीणों को बुलाने के लिए आशा कार्यकर्ता और आंगनबाड़ी सेविकाओं सहित अन्य कर्मियों का सहयोग लिया गया। साथ ही स्थानीय जनप्रतिनिधियों मुखिया, पंचायत समिति सचिव एवं अन्य बुद्धिजीवियों का भरपुर सहयोग प्राप्त हुआ। अभियान की सफलता के लिए गांव स्तर पर विभिन्न माध्यमों से जागरूकता अभियान भी चलाया गया था।

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