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अररिया/ भरगामा में पंचायतों की तुलना में लगभग एक तिहाई पंचायत सचिव कार्यरत

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✍️ अंकित सिंह, भरगामा (अररिया)

ऐसे में कैसे होगा ग्राम पंचायतों का विकास ?

भरगामा (अररिया) : बेशक आज गांव का विकास पंचायती राज व्यवस्था पर निर्भर है। सरकार ने भी पंचायती राज व्यवस्था को सशक्त बनाने के लिए अधिकार देने के साथ-साथ धन की भी व्यवस्था कर रखी है। परंतु पंचायत सचिवों के अभाव के कारण पंचायती राज की पूर्ण कल्पना धरातल पर सही नहीं उतर पा रही है।

भरगामा मे 20 पंचायतें हैं, जबकि सचिव की संख्या मात्र 11 है। दो पंचायत सचिव सेवानिवृत्त होने के बाद भी काम कर रहे हैं। पंचायत संख्या के अनुकूल सचिव नहीं होने के कारण इसका सीधा असर गांव के विकास पर पड़ रहा है। वर्तमान में 20 पंचायतों के विकास का जिम्मा मात्र छह सचिवों पर है। परिणाम है कि एक सचिव को तीन या उससे अधिक पंचायतों का प्रभार रहने के कारण एक तो समय पर विकास नहीं हो पाता है। साथ ही सचिवों पर काम का अत्यधिक बोझ भी रहता है। जबकि विकास योजनाओं के क्रियान्वयन में इनका अहम योगदान है। पंचायत विकास के मद में सरकार से उपलब्ध राशि के क्रियान्वयन का जिम्मा सचिव के पास रहता है। खर्च की गई राशि के लेखा-जोखा के साथ-साथ योजना को पूर्ण करने तक की जवाबदेही इनके ऊपर रहती है। परंतु जब सचिवों को तीन या उससे अधिक पंचायतों के प्रभार रहने की वजह से वह सही ढंग से पंचायतों में समय नहीं दे पाते। जिसका सीधा असर विकास कार्यों की गुणवत्ता पर पड़ता है। भरगामा में सचिवों की कमी खल रही है। यहां तक की आम लोगों को भी छोटे कार्यों तक के लिए कई दिनों तक इंतजार करना पड़ता है।

कुल मिलाकर पंचायत सचिवों की कमी के कारण पंचायती राज व्यवस्था की परिकल्पना पर आघात पहुंच रहा है। गौरतलब है कि भरगामा में कुल 20 पंचायतों की तुलना में छह नियमित तो दो सेवानिवृत्त व तीन पटना ट्रेनिंग में इस तरह पंचायत सचिव काम कर रहे हैं। सरकार कई तरह की योजनाएं चला रखी है। सात निश्चय योजना सरकार की एक नई खोज है और सभी योजनाओं का क्रियान्वयन पंचायत सचिवों के कंधे पर है। लेकिन पंचायत सचिवों की कमी से विकास की गति काफी धीमी है।

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