प्रयागराज/ अंतर्राष्ट्रीय पितृ-दिवस के अवसर पर निराला साहित्य समूह द्वारा ऑनलाइन काव्य-गोष्ठी का किया गया आयोजन – News4All

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प्रयागराज/ अंतर्राष्ट्रीय पितृ-दिवस के अवसर पर निराला साहित्य समूह द्वारा ऑनलाइन काव्य-गोष्ठी का किया गया आयोजन

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: न्यूज़ डेस्क :

“पल-पल करते खुशियों की बौछार हमारे बाबू जी…!

प्रयागराज : अंतर्राष्ट्रीय पितृ-दिवस के शुभ अवसर पर निराला साहित्य समूह द्वारा ऑनलाइन काव्य-गोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ संजय सिंह ने सरस्वती वंदना से किया। इस अवसर पर काव्य-संध्या की अध्यक्षता कर रहे भोपाल के मशहूर ग़ज़लकार देवेश जी ने अपनी ग़ज़ल में पिता को ऐसे स्मरण किया-

“हम पर खूब लुटाते अपना प्यार हमारे बाबू जी।
करते पल-पल खुशियों की बौछार हमारे बाबू जी।
अम्मा जब बीमार पड़ीं तो सेवा करते नहीं थके,
हालांकि सेहत से थे लाचार हमारे बाबू जी।।”

मुख्य अतिथि ईश्वरचंद्र त्रिपाठी (आजमगढ़- उ.प्र.) ने पिता के स्वरूप को यूँ परिभाषित किया-

“सबने देखा जहाँ एक इंसान को।
हमने देखा वहीँ एक भगवान को।।
वो पिता हैं जो विषपान करते हुये,
ज़िंदगी सौंपते अपनी संतान को।।”

विशिष्ट अतिथि संजय सिंह जी ने जीवन में पिता की कमी को बेहद मार्मिक पंक्तियों से पढ़ते हुये वाहवाही लूटी-

“गलत करूँ या सही करूँ कोई नाराज़ नहीं होता।
अंदर से इतना टुटा हूँ खुद पर नाज़ नहीं होता।।
धन दौलत सब लुट जाते हैं सर पर ताज़ नहीं होता,
कंगालों से दिखते हैं हम जिस दिन बाप नहीं होता।।”

कार्यक्रम का प्रवाहपूर्ण कुशल संचालन कर रही भोपाल – म.प्र. की सुप्रसिद्ध कवयित्री डॉ. लता “स्वरांजलि” ने सुमधुर स्वर में पिता को समर्पित ग़ज़ल पढ़कर दाद बटोरी-

“खुदगर्ज़ी से दूर हैं मेरे बाबूजी।
इसीलिए मशहूर हैं मेरे बाबूजी।।
बाहर से मज़बूत दिखाई देते हैं,
अंदर से तो चूर हैं मेरे बाबू जी।।”

डॉ. लता ने कहा कि माँ जननी है किंतु संघर्षों के मार्गदर्शक और संतान की पहली प्रेरणा पिता ही होते हैं। माँ सहना तो सिखाती है किंतु पिता अन्याय के विरुद्ध आवाज़ उठाना सिखाते हैं, इसीलिये पिता को आकाश की संज्ञा दी गई है।

मुक्तप्राण सुधांशु पाण्डे “निराला”- प्रयागराज ने मुक्त कंठ से मुक्त छंद पढ़कर खूब वाहवाही लूटी-

‘किसी का प्यार प्रत्यक्ष
किसी का परोक्ष,
माँ जन्म देती है
पिता देता मोक्ष,
मेरी ख़ातिर वही रईस वही फ़क़ीर
उम्मीदों की पिटारी है मेरे बाबू की तस्वीर।”

दुर्ग-छत्तीसगढ़ की कवयित्री डॉ. बीना सिंह ने पिता को कुछ ऐसे परिभाषित किया-

“चट्टान सा तन है मन मोम सा नरम।
जिन्हें देखकर है होता खुदा का भरम।।
वह पिता ही है जो ख़ुद दर्द सहकर,
ज़ख्म पर हमारे लगाते हैं मरहम।।”

उभरते कवि सुजीत जायसवाल “जीत” (प्रयागराज) ने अपनी कविता में पिता का चित्र कुछ ऐसे उकेरा-

“जीवन के हर सुख-दुःख में याद आये पूज्य पिता जी।
व्यापार व्यवहार संस्कार की बात
बतायें पूज्य पिता जी।।”

काव्य-गोष्ठी के अंत में आभार निराला साहित्य-समूह के अध्यक्ष सुधांशु पाण्डे “निराला” ने अभिव्यक्त किया।

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